निबन्ध - नवनीत भाग - 1 | Nibandh - Navaneet Bhag - 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)€ २३ )
चहहु छ सायो निज फल्यान
तो सब मिल्लि सारत-सन्तान ॥
जपो निरन्तर एक जबान ।
छिन्दी, हिन्दू , हिन्दुस्तान ॥ १॥
तथह्ि झुघरिद जन्म निदान ।
तपहि भलो फरिददै सगवान
जय रदिहै निशिद्नि यह ध्यान।
हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान ॥ २॥
इससे इनका देशामिमान भी सिद्ध छोता है।
कविता के नसने ।
पडित प्रतापनारायण की कविता फे कुछ नमूने देकर दम
इस खेस को पूरा फरना चादते है--
ढ
आाठला-खामत |
नोन, तेल, लकढी, घालछु पर टिफस लगे अछ्द 1
चना, चिर्रोजी मोल मिले जद दीन प्रजा फट ॥
जएा उपी, घाणिज्य, शिवप, सेवा सब माद्दी ।
देशिन फे द्वित कछू तत्व फजु फैसहु नादीं ॥ १ ॥
फकहिय फद्दा खगि नुपति दये है जह ऋन भारन 1
तह तिनक्ली धनकथा,कौन जो णद्दी सघारन॥
जे अनुशासन रन हेत इत पठये जाहीं।
से बहुधा बिन काज़ प्रजा सो मिलत कजादीं ॥ २॥
खोफोक्ति शतक |
छीौक्षि नागरी छुझुख़ मागरी उ्दू के रंग राते। (.”
देशी धस्तु चिद्याय विदेशिन सो सर्देख ठगाते ॥
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