अंगुत्तर निकाय | Anguttar-nikay Part -3

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Book Image : अंगुत्तर निकाय - Anguttar-nikay Part -3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थु रहता हैं। भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय है। फिर भिक्षओ, एक भिक्षुका अपने साथी भिक्षुओंके प्रति प्रकट अप्रकर्ट रूपसे मेत्री-भाव युक्त वाणीका व्यवहार रहता है। भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय हे । फिर भिक्षुओ, एक भिक्षुका अपने साथी भिक्षुओके प्रति प्रकट-अप्रकट रुूपसे मेत्री-भाव यूक्‍्त मानसिक व्यवहार रहता है। भिक्षुओ, यह वात नी स्मरणीय है । फिर भिक्षुओ, एक भिक्षुअको जो कुछ भी धार्मिक विधिसे प्राप्त होता है, यहाँ तक कि भिक्षा-पात्रमें प्राप्त भिक्षा भी, वह उसे अपने सदाचारी साधियोंकों घिना वाटि अकेला ग्रहण नहीं करता, वह वॉट कर खानेवाला होता है, भिक्षओ, यह वात भी स्मरणीय हैं। फिर भिक्षओ, भिक्ष अपने अखण्ड छिद्र-रहित घव्वे-रहित, अकलूपित, मुक्त, विज्ञों द्वारा प्रसित, निम॑ल, समाधि-मार्गी णघीलोको ले अपने वैसे ही शीलवानू साधियोके साथ अप्रकट और प्रकट रूपसे सदाचार पूर्ण व्यवहार करता है । भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय है। फिर भिक्षुओ, एक भिक्षु, जो यह आर्य-दृषप्टि है, जो तदनुसार आचरण करनेवालेका दुख क्षय कर देनेवाली है,वैसी दृप्टि-युक्त हो अपने साथियोंके प्रति प्रकट तया अप्रकट रूपसे व्यवहार करता है। भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय है। भिक्षुओ, ये छह वाते स्मरणीय है। भिक्षुओ, ये छह वाते स्मरणीय हैं, प्रिय लगनेवाली है, गौरवाहें है, सगठनके लिये, अविवादके लिये, समग्र-भावके लिये तथा एकताके लिये होती है। कौन-सी छह वातें ? भिक्षुओ, एक भिक्षुका अपने साथी भिक्षुओके प्रति प्रकट अप्रकट रूपसे मैत्री-पुक्‍्त शारीरिक व्यवहार रहता हैं। भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय है, प्रिय लगनेवाली है, गौरवाहं हे, सगठनके लिये, अविवादके लिये, समग्र-भावके लिये तथा एकताके लिये होती हैं। फिर भिक्षुओ, एक भिक्षुका अपने साथी भिक्षुओके प्रति 'प्रकट-अप्रकट रूपसे मंत्री भाव युक्त वाणीका व्यवहार रहता है। भिक्षुओ, यह बात भी स्मरणीय है, प्रिय लगनेवाली है, गौरवाह हे, सगठनके लिये, अविवादके लिये, समग्र-भावके लिये तथा एकताके लिये होती हैं। फिर भिक्षुओ, एक भिक्षुका अपने साथी भिक्षुओके प्रति प्रकट-अनप्रकट रूपसे मत्री-भाव-युक्त मानसिक व्यवहार रहता है। भिक्षूओ, यह वात भी स्मरणीय है, प्रिय लगनेवाली हैं, गौरवाहं हे, सगठनके लिये, अविवादके लिये, ससमग्र-भावके लिये तथा एकताके लिये होती है। फिर भिक्षुओ, एक भिक्षुको जो कुछ भी घारमिक विधिसे प्राप्त होता हैं, यहाँ तक कि भशिक्षा-पात्रमें आप्त भिक्षा भी, वह उसे अपने सदाचारी साधियोको बिना बवाँटे अकेला ग्रहण नहीं करता, वह वाँट कर खानेवाला होता है। भिक्षुओ, यह वात भी स्मरणीय हे, प्रिय लगने वाली हूं , गौरवाहं हे, सगठनके लिये, अविवादके लिये, समग्र भावके लिये तथा




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