बुद्धियोगपरीक्षा पूर्वखण्ड | Buddhiyogapariksha Purvakhand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
801
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मोतीलाल शर्म्मा - Motilal Sharmma
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बृद्धियोगसंस्मरणम-- '
आसमान रपिन विद्धि, शरीर रपमेव तु ))
“बुद्धि” तु सारण मिद्धि, मन प्रहममेर भर ॥१॥
पिडानसारमिपंस्तु मन.प्रग्रदराभर ॥
सो>ज्जन) पारमाष्नोति तहिप्सो! परम पहुम् ॥२॥॥ ( कठोपलिपस १३३,६ ) ।
यो देबानां प्रमदोवृफदरद्द विश्वाणियों र्द्ो मइ्पि ॥
हिरिफ्यगमे जनपामास पू्षें स नो मृद्धपा/ झमया संयनकू, ॥३।( रे शश )।
स्पप्रसायात्मिय्य धृद्धिरेफेश इत्ननदन ! ॥
प्रहशास्ा घनन्तारच पृद्धयोंम्पश्सापिनाम ॥४॥ ( गौता राश१ )
दूरेस झहर॑ इम्म 'बृद्धियेगाद! एनज्जय ! ॥
बुद्धी शरणमन्दिच्ठ ऋपणा' फशइतब! ॥५॥ (भीषा शह्ाछ)।
यदा ते मोइढछिस्त बृद्धिम्पतिदरिप्पति ॥
दशा गन्तासि निर्के! भोकम्पस्प भुत॒स्य न ॥६॥ (गीता शशर। )।
श्र तिविप्रतिपआ ते यदा स्पास्यति निभल्ता॥
समामावचसा मुद्धिस्वदा पोगमबाप्स्पसि 19॥ ( गीठा राशश। )।
परसादे सर्बद्रानां हानिरस्पोपशपत ॥
प्रसभचेततों घाशु पृद्धि। पस्यंबतिप्ठते |८॥ ( गीठा श६४। )।
देपां सकहपुक्तानां मजसों प्रीतिपृमक्रम् ॥
दृद्ामि 'बुद्धिपोरग! त सेन मास्पयान्ति ते ॥#॥ ( गीसा १ण१ 1)
का चददीद का ०० ध
देस््मापोगाप युश्पस्व, योग' कौशल ॥१०॥ (६ गीवा २७० )
सैदसा सर्मडर्म्माशि मयि संन्यस्य मसरः ॥) हक
'ृद्धियोग! दृपामिन्य मदिदः सते मुदर )११॥ ( तोता १००२० ) )
नमक
User Reviews
No Reviews | Add Yours...