बुद्धियोगपरीक्षा पूर्वखण्ड | Buddhiyogapariksha Purvakhand

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Buddhiyogapariksha Purvakhand by मोतीलाल शर्म्मा - Motilal Sharmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बृद्धियोगसंस्मरणम-- ' आसमान रपिन विद्धि, शरीर रपमेव तु )) “बुद्धि” तु सारण मिद्धि, मन प्रहममेर भर ॥१॥ पिडानसारमिपंस्तु मन.प्रग्रदराभर ॥ सो>ज्जन) पारमाष्नोति तहिप्सो! परम पहुम्‌ ॥२॥॥ ( कठोपलिपस १३३,६ ) । यो देबानां प्रमदोवृफदरद्द विश्वाणियों र्द्ो मइ्पि ॥ हिरिफ्यगमे जनपामास पू्षें स नो मृद्धपा/ झमया संयनकू, ॥३।( रे शश )। स्पप्रसायात्मिय्य धृद्धिरेफेश इत्ननदन ! ॥ प्रहशास्ा घनन्तारच पृद्धयोंम्पश्सापिनाम ॥४॥ ( गौता राश१ ) दूरेस झहर॑ इम्म 'बृद्धियेगाद! एनज्जय ! ॥ बुद्धी शरणमन्दिच्ठ ऋपणा' फशइतब! ॥५॥ (भीषा शह्ाछ)। यदा ते मोइढछिस्त बृद्धिम्पतिदरिप्पति ॥ दशा गन्तासि निर्के! भोकम्पस्प भुत॒स्य न ॥६॥ (गीता शशर। )। श्र तिविप्रतिपआ ते यदा स्पास्यति निभल्ता॥ समामावचसा मुद्धिस्वदा पोगमबाप्स्पसि 19॥ ( गीठा राशश। )। परसादे सर्बद्रानां हानिरस्पोपशपत ॥ प्रसभचेततों घाशु पृद्धि। पस्यंबतिप्ठते |८॥ ( गीठा श६४। )। देपां सकहपुक्तानां मजसों प्रीतिपृमक्रम्‌ ॥ दृद्ामि 'बुद्धिपोरग! त सेन मास्पयान्ति ते ॥#॥ ( गीसा १ण१ 1) का चददीद का ०० ध देस्‍्मापोगाप युश्पस्व, योग' कौशल ॥१०॥ (६ गीवा २७० ) सैदसा सर्मडर्म्माशि मयि संन्यस्य मसरः ॥) हक 'ृद्धियोग! दृपामिन्य मदिदः सते मुदर )११॥ ( तोता १००२० ) ) नमक




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