तुलसी ग्रन्थावली भाग -२ | Tulsi Granthavali Part -2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.24 MB
कुल पष्ठ :
504
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वराग्य-संदीपिनी
' दोहा ।
राम घाम दिसि जानकी, लघन दाहिनी थोर ।
ध्यान सकल कल्यानमय, सुरतरु तुलसी तोर ॥ १ ॥
तुलसी मिटे न मोदतम, किये कोटि शुनग्राम ।
हृदय-कमल फूले नहीं; बिलु रवि-कुल-रवि राम ! २ ॥
सुनत लखत श्रुति नयन बिचु; रसना बिलु रख लेव ।
बास नालिका बिलु लहे; परसे बिना निकेत ॥ ३ ॥
कि सोरठा ।
झज झाद्त झनाम, अलख रूप शुनरहित जो |
सायापति सोइ राम; दास-देतु नर-तटल्ठु घरेड ॥ ४ ॥
दोहा ।
तुलसी यहद तनु खेत है, मन बच कर्म किसान ।
पाप पुन्य दे बीज हैं, बचे सो लवे निदान ॥ ४ ॥
तुलसी यह तन तवा है; त्पत सदा त्रय ताप ।
सांति होहि जब सांतिपद, पावे रामप्रताप ॥ ६ ॥
तुलसी वेद-पुरान-मत, पूरन साख बिचार ।
यद्द बिराग-संदी पिनी; अखिल ज्ञान को सार ॥ ७ ॥।
क 0
( संत-स्वभाव-चणन है
दोहा .
सरल बरन भाषा सरल, सरल झथेंमय मानि |
तुलसी सरसे संतजन; वाहि परी; पहिचानि ॥ ८ ॥
चौपाईं | ः
झति सीतल अति दी सुखदाईं । सम दम रामघजन छधिंकाई 1
! जड़ जोवन को करे सचेता | जग माही विचरत एदटिं हेता ॥६॥
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