हासिल रहा तीन | Hasil Raha Teen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चुढ़ा भेजा, इसीलिए
“पहले तुम कमरे से बाहर जाओ । बाहर'**”
मां बोली, “तुम उत्ते बाहर क्यों निकाल रहे हो ? मैं उसे फैसला करने के
लिए बुछा छाई और तुम '**/
तब विजय ने मृष्टिघर को ठेलना शुरू कर दिया था । तुम पहुछे कमरे
। के बाहर जाओ, कमरे के बाहर से बात करो ।/
उसे बाहर निकाल देने से दया फायदा होगा ? / हिमांशु बाबू बोले, “तुम
लोगों के अत्याचार से, लगता है, शाति से मरना भी मुश्किल है ।*“*भजी भी,
घेरा णनी दो तो **/
हिमांगु णाबू विस्तर पर बैठे-बेठे होंफने छंगे 1
पर्रतु उम्र क्षण हिमाशु वावू की बातचीत किसी के काने में नहीं पहुंची |
उधर विजय जितनी दीयी आवाज में घिल्ला रहा था, मौधोजों भी उतनी ही
सीयी आवाज में चिल्ला रही थीं।
विजय ने कहा, “इतने दिनो से हम कुछ नहीं कहते हैं, इसीलिए न ! उन
झोगों के धर की बिल्सी हमारे रसोईपर में घुसकर मछली खा जाती है। हमसे
इसके लिए कुछ कहा है ? और तुम यह जो कहते हो कि हमने उनके घिर पर
गंदगी फेंकी है, सो गंदगी पर क्या हमारा नाम लिखा है, जो कहेगी कि हमने ही
फेंकी है ? इस मकान में सिर्फ हमी छोग रहते हैं ? तीमरी मंशिकत पर आदमी
मही रहते ? मे गंदगी फेफना नहों जातते हैं या उनके मकान में गंदगी जमा
नहीं होती है**१”
मां ने भी लड़के की बात पर हामी भरी | बोली, “हमने फिर भी पांच एपमे
सनस्वाह पर मेहतर रखा है। तीपरी मंजिक के बांगालों ने हम लोगों की तरह
सेहतर रखा है ?”
हिमांशु बाबू फिर से चिल्ला पड़े, अजी ओ, सुनती हो' 'मे रो छाती कसी-
कसी तो कर रही है
नयी बहू का नहाना-घोना खत्म हो छुझा था । नछूघर के दरवाज़े टूटे हुए
हैं। पानी वेआइर हैं। बहुत दिन पहले के बने हैं । पता नही, फौनली छभफड़ी
है ! द्वी सकता है कि ईश्वरप्रसाद ढनढ़नियां को भी मालूम से हो। दीमझ छग्
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