कामिनी | Kamini
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
246
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कामिनी रप
बलभद--अब साफ-साफ कह चलो! मगर एक बात वा खयाल रखिएगा
कि इधर-उधर बकक्ते न फिरियेगा? हाँ जब खुछ पडो।
रनबीर सिंह से कुछ माजरा सुनकर बलभद्र ने कहा--अजी, एक तस्वीर
इम तुमको दिखाएँ, भूख-प्यास बन्द हो जाए। यह भी कुंआरी लडकों है। मगर
वह सूरत पाई हैँ कि शायद दो-तोन हजार कोस के गरिद में कोई उसको पहुँच
सके। गश आ जाएगा। ज़रा सेमलते हुए! (तस्वीर दिखाकर) न कहिएगा।
ठडी साँस भरके रनबीर सिंह ने कहा-नयार, यह मसनुई तस्वीर है।
ऐसी सूरत इन्सान की कहाँ होती है - अगर एसी औरत सचभुच होगी तो हज्ारा
को कत्ल वर डाले। और एक बडा छुत्फ यह है कि हया और शोखी दोनों
मौजूद है। यह वात करोडो ओखरता में दो एक को हासिल होती है --सादगी
के साथ बॉकपन--बहुत मुश्किल हूँ।
बलमद्र सिंह ने कहा--बन्दानेवाज़, यह मस््नुई नहीं है। इसी शहर में
मौजूद है। मैने तो कहा ही था, कि देखते ही भूस-प्यास बन्द हो जाएंगी।
(सर पर हाथ रखकर ) इस सर को कसम यह एक कुँआरी छडकी की तस्वीर
है, भौर बडे शरीफ खानदान की है ।
इतने में ठाकुर गुमान सिंह तहसीलदार आये। उनको रनवीर ने तस्वीर
दिखाई, और कफहा---है अस्छ परी, या नही ?
वहसील्दार ने तस्वीर देखकर कहा--कामिनो, पद्मचितों की वहुन। गजराज
सिंह की कऊबकी।
मह सुनते ही रनवीर सिंह के चेहरे की रगत बदल गई, और दिल में
सोचा कि वाह, यह तो कामिनी ही निवली ! घर बैठे भगवान में सूरत दिखाई।
अच्छी सायत है। और नेक शयुन हे।
गुमाद सिंह ने कहाय--हमने इस छडकी को कोई दस बरस हुए जब देखा
था। तब कद इतता नथा। छडकी जल्द बढती हें। मगर सच या हैं कि खुदा
न अपने हाथ से बनाई है। चकोर और हिरन में यह छल-बरू वहाँ? इसको
हुए भी दो बरस) यह थोडा जमाना नहीं होता। अब तो बुआरपने के सब
से वेगानो-परायो से छिपती और पर्दा बरती होगी।वया कहते है, अब तो सयानी
हुई , वद बाढ़ पर आया है। जब में ओर अब में बडा फू है। रूबकी यास
को तरह बढ़ती हैं। अब तो इसकी शादी वी फिपर बरती चाहिए 1--खूब याद
आया। अरे मियाँ रनवीर सिह, छुम यार क्या नहीं डोरे डालते ? वल्छाह, चूबते
हो, बहुत चूपते हो! ऐसी परी दूसरों न मिलेगो, हर है। किसी बड़े सश-
ससीब के हाथ आएगी। खुदा जाने, खुदभी खुशवसीब है, या नहीं। अगर
अच्छे लड़के से ब्याह हुआ तो सुशतसीर है, वर्ना बदकिस्मित, बदनसीव। भाई,
दाप्पा जरूर लडाओं! क्याजी बलभद सिह?
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