इसीका नाम दुनिया | Isika Naam Duniya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छा चुका है। निवारण को भी वितनी बार बुला घुका है। उमसे कहा, “अब तो तुम्हारी भी उम्र हुई निवारण, अब बृछ वाद निवारण कहता, 'अरे साहाजी, मुझे अब किसके लिए सोचना है! दुनाल साहा ने कहा, “सोचते हो, हमेशा ऐसे ही चलेगा ? अरे मुझ ही देख लो न, मैं चाहूं तो कया रईसी नही कर सकता ? चाहूं तो मैं भी पैर पर पैर चढ़ाकर आराम से मददी के ऊपर पढ़ा रह सबता हैं । मुझे क्या पडी है कि हाथ में झाड़ू लिए सुबह-सुबह घाट पहुचू ? यह गब किसके लिए करता हूं ? तुम्ही कही, किसके लिए करता हूं? “जी, परलोक के लिए !” तो फिर ? इसीमे समझ लो। मुझेक्या है? मु्ते वया जरूरत है पसो की ?े अकेला मैं कितना खाऊगा ? शुगर मिल हो जाने से भी तुम्ही लोगों का फायदा है। देश के दस जनों की फायदा होगा। इस देश के लोग बड़े गरीब हैं। एक वबत मैं भी गरीब था, गरीबो का दु ख मैं नहीं समझूगा तो कीन ममझेगा ! तुम्हारे मालिक समझेगे २ “जी, मालिक की वात छोड़ दें। “तब समझ लो, शुगर मिल से लोगो का ही फायदा है। कितने गरीबों को काम मिलेगा, दो झून खाने को मिलेगा, पहनने को मिलेगा, गरीयों का दु ख देयकर मेरी आखें भर आती हैं निवारण !” नियारण ने कुछ नही कहा 1 चुप ही रहा । दलाल साहा ने कहां, “अरे, अपनी ही वात लो, पिछले पद्धह साल मे तुम्हे देख रहा हूं, १हले तुम्हारा बया चेहरा था और अब बया हो गया हैं ? ऐसा कौन-सा सालच है कि मालिक के यहा पड़ें हो ? घानें को मिलता है भरपेट ?े और त्तनख्वाह वर्यरह ?” नियारण ने फिर भी कोई जवाद नही दिया । दुलाल साहा कहता रहा, खैर, जाने दो, तुम्हे घाने को मिलता है या नही मिलता, तनख्वाह मिलती है या नही, मुझ्ते बया पड़ी है इन सब बातों भें जाने की। तुम्हारा मामला है, छुम ममझोगे, मेँ बौच होता हू? मैं डुछ भी नही हू लेकिन बात असल में यह है कि दूपरे का हु य इसीका नाम दुनिया | २७




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