भारतीय इतिहास का भौगोलिक आधार | Bhartiya Itihaas Ka Bhogolik Aadhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतोय इतिद्दास का भोगोलिक आधार... ई8 उुद्दास की पश्चिम फी तरफ चढ़ती सेना फो सतलुज और जाल के प्रवाद से पार उतारने के लिए य्ाचौन श्जुश्षति 31५ ५५१७४०॥ )# के अनुसार विश्वामिच * ऋषि को इन पैनों नदियाँ फी जो स्तुति करनी पड़ी थी उस की मनोद्ारिणी फ्विता अब भो ऋग्वेद में पिंयमान है।'। शारतोय इतिहास का सच्च से पहला/पर्दा जब हमारे थागे सुलता है तथ भो हम पुर्श्वल्‌ ऐल की राजधानी गगा-यमुना के ठोक संगम पर प्रसिं- धान (प्रयाग) के नाऊे में पाने हैं । प्राचोत आर्यो के सगम-स्पान कौ पविय मानने की जड में यही भौतिक उपयोगिता का विचार दिफाई देता है। शेशनाग चश फे जिस सामाज्यक्रामी . एजा ने विदेद, वैशाह्ली और चस्पा (अद्ादेश भागलपुर) पर आप रखने के लिए पाटलीप्राम फी पिलावन्दी फो थो उसे जञाप्रामिम उपयोगिता फी खूब पदचान थी। पाटलोीपुत (पटना) फी स्थिति उस समय गंगा ओर सोन के सगम फे ठोक वीज्न में थी, आजकल खोन के अपनी घारा फो दूस मील नीचे' ले जाने के कारण उसकी स्थिति का चेसां गौरव नहीं रहा । दिल्ली, आगरा, फालपी, छुनार इत्यादि की स्थिति नदियों फे किनारे पंर रएने फे कारण विशेष साआ्रामिक महत्व फो रही दें । राज॑पूताना ओर अवध के बोच शागरा उमना के ओर फर्देलायाद या फामपुर गया के घाट फो ऊायू करता हैं। # इस अर्थ में सत्ऊृत में पदल्े श्रुति शब्द ऋधिक प्रयक्त 'द्ोताथा, पर वह भ्रव दूसरे ऋर्थो में आगया है। अनश्नति श भीभाचीद हे।दे खिये, पा र्नीदर (2018 पर ते) 411 14180071« एवो 1ए८0॥07 पृ० है ते 1 मंडल ३, झूछ शश री




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