विश्वम्भरी | Vishwambhari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
177
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने जन भी शत्रु-शिविर में-
एक-एक कर चले गए,
विश्वासी जन-मीत सचिव के-
हाथों ही ये छले गए।
ऐसे में ही एक दिवस वे-
मृगया को थे निकल पढ़े,
दूर-सुदूर-गहन जगल में-
आकर बृष थे हुए खड़े।
सहसा मेधा ऋषि का आश्रम-
दीखा विमल-पवित्र बहां,
पावन-परम सुहावन-सा था-
सात्विकता का चित्र वहांँ।
जप ने किया प्रणाम हृदय से-
शीश झुका फिर बैठ गए,
उनके मन में जागे तत्क्षण
भाव अनेकों नए-नए।
किया प्रणाम महामाया को-
आँख मूँद लौ-लीन हुए,
विनय हृदय से लगी फूटने -
मन से प्रेम प्रवीण हुए।
विश्वम्भरी 49
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