पंचास्तिकाय | Panchastikay

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Panchastikay by पन्नालाल बाकलीवाल -Pannalal Bakliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्मास्तिकायः ।, . १७ मानवर्तिप्ययाणानां भावानां पर्यायाणां खरूपेण परिणतत्वादस्तिकायानां परिवर्तनलिज्ञस्य कालख चारिति इच्य्ल । बच तेपां बूतमवकविष्यदभावात्मना परिणममानानामनिद्यलम । यतस्ते बूतभवरूविष्यक्नावावसथाखपि प्रतिनियतखरूपापरित्यागाज्रित्या एव । अन्न काल: | पुहलादिपरिवर्तनहेतुलात्पुदठादिपरिवतनगम्यसानपयायत्वाचास्तिकायेष्वन्तभावार्थ से परिव्तनदिक् इत्यक्त इति ॥ ६ 0 >> >> न-+ कर उन 23 अर कर विन 2 ०इलआननमसलक #ल->> संतः परियदणलिगसंजुत्ता परिवर्तनमेव जीवपुद्ठलादिपरिणमनसेवा्रिश्षमवत्‌ कार्यभूत॑ छिग॑ चिह्मं गमक॑ हापके सूचन यस्‍्य से भवति परिवर्तनलिज्जञ: काछाणुद्रेब्यकालस्तेन संयुक्ता। । ननु काल- इब्यसंयुक्ता इति वक्तवब्यं परिवर्तनलिह्नसंयुक्ता इति अव्यक्ततचन किमशथरमिति | नव | पंचास्ति- फायप्रकरणे झालस्य मुख्यता नास्तीति पदाथोनां नवजीणेपरिणतिरूपेण ' कार्यलिट्लेल ज्ञायते यतः कारणात्‌ लेनेव कारणेन परिवर्तनलिज्ञ इत्युक्ते । अन्न पड्दब्येपु मध्ये दृष्श्रुतानुभूताहार- पर्मंधुनपरिग्रद्वा दिसंहा दिसमस्तपरद्वव्याठम्बनोत्पन्नसंकर्पविकल्पशून्यशुद्धजी वा स्तिकायश्रद्वान ज्ञा- नानुष्टानरूपाभेदरत्तत्रयरुक्षणनिर्षिकल्पसमाधिसंजातवीतरागसहजाएूवैपर॒मानन्दरूपेण खसंवेदन- ज्ञनेन गम्धं प्राप्प॑ भरितावरस्थ शुद्धनेश्वयनयेन ख्वकीयदेहान्तर्गत॑ जीवद्गव्यमेबोपादेयमिति फाल्‍ूको द्रव्यसंत्ा कहते हैँ;न परिवत्तनलिक्ञसंयक्ता। | पुद्ठलादि द्ृव्योंका परि- णमन सो ही है लिक्त ( चिह् ) जिसका ऐसा जो काल, तिसकर संयुक्त [ति एवं च] ही [ अस्तिकाया; ] पंचास्तिकाय [ द्रव्यभाव॑ ] दृव्यके खरूपको [गरुछन्ति] प्राप्त होते हैं, अर्थात्‌ पुद्नछादि द्रव्योंके परिणमनसे कालद्रव्यका अस्तित्व प्रकट होता है। पुन्टछ परमाणु एक प्रदेशसे प्रदेशान्तरमें जब जाता है, तब उसका नाम सूक्ष्मकालकी' पयोय अविभागी होता है| समय कालरूपयोय है । उसी समयपयोयके द्वारा कालद्रब्य जाना गया है | इस कारण पुद्कछादिकके परिणमनसे कालद्र॒ग्यका अस्तित्व देखनेमें जाता है | कालकी पर्यायको जाननेके लिये बहिरंग निमित्त पुद्छका परिणाम है इसी अकाय कालद्रव्यसद्दित उक्त पंचास्तिकाय ही पड्द्रव्य कहलाते हैं। जो अपने गुण पर्योयोंकर परिणसा है, परिणमता है ओर परिणमैगा उसका नाम द्रव्य है । ये पड़- द्रव्य कैसे हैं. कि;-[ जेकालिकमावपरिणता; ] अतीत, अनागत, वर्तमान काछ संबंधी जो भाव कहिये गुणपयोय हैं उनसे परिणये हैं. फिर केसे हैं थे पद्द्॒व्य ? [ नित्या; ] निय्॒ अविनाशीरूप हैं। 'मावाथे-यद्यपि पयोयाथिकनयकी अपेक्षासे त्रिकाहपरिणामकर विसाशीक हैं, परन्तु द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा टंकोत्कीणेरूप १ पश्चास्तिकाया:, ३ अन्न पश्चास्तिकायप्रकरणे, ३ परिवर्तनमेव पुद्वलादिपरिणमनमभेव अभेधूमवत्कायभू्त लिश्ने चिहं गसक॑ सूचक यस्त॒ स भवति परिवर्तेनलिज्ः कालाणुद्रव्यरूपो द्रव्यकालस्तेन संयुक्त: । नल कालद्व्यसंयुक्त इति वक्तव्य परिवर्तनलिझसंयुक्त इत्यवक्तव्यवचन किमर्थमिति । नेव । पश्चास्तिकायग्रकरणे .अलिमुख्यता नास्तीति पदार्थानां नव॒जीणेपरिणतिरूपेण कार्यलिश्नन ज्ञायते । ३ पश्चाण० -




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