दीर्घायु | Dirghayu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
338
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)घां
५ छू दंड
धरिश्न्द्के पुत्र रोदितको पूर्षे समयमें इन्द्रने उपदेश किया कि--
“नानाभ्राताय श्रीरस्तीति रोहित शश्ू म। पापों
नृपट्ठरोजन । इन्द्र इध्चस््त, सला।
चरैवेति चरेवेति ॥९॥ ” ( मद्दीदासकुृत ऐतरेय ब्रा० )
“है राजपुत्र रोहित! (अथ्राताय ) जो परिश्रम द्वारा
नहीं धकता, ऐसे खुस्त मनुष्यके लिये ( श्री ) धन सम्पत्ति;
छेश्वर्य, बल, प्रभुता भादि ( न अस्ति ) प्राप्त नहीं दोता।
( इति शुधुम ) ऐसा दम छुनते आये हैं! (नृषदुवर जन )
जो मनुष्य आारूसी द्ोता है, बद्दी (पाप ) पापी द्वोता
है ( इत ) निश्चयसे ( इन्द्र ) पु (चरत खा ) उत्साही
मनुष्यका मित्र हैं। इसलिये ( अतएव ) पुरुषा्थे करो।” ज्ो
छुस्त मनुष्य सोता रहता है, उसे आप पापी समम्ध्यि। अक
मंण्यचा, छुरती, निस्योगता, झाछापन, आल्स्य, निकम्मापन,
भोर आरामठछबी भादि द्वो पाप हैं। जो निकम्मा रहता है
घट्दी पापी होता है। पुरुषार्थ करना दी पुण्य है। जो मदन
प्रयत्ष करते हैं. थे ही पुण्यात्मा ओर घर्मोत्मा मनुष्य हैं ।
“इन्द्र इष्धए्त सखा |”
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ईश्वर प्रथक्षशील पुस्षोंकी हो सद्दायता फरता है ओर
अकमेंण्योंकी शाप देता है , भत्एव प्रत्येक मनुष्यको पुरुषाथ
फरते रदना चादिये। पुरुषार्थ फरनेवालेकी भात्मामें भात्म-
पिग्यास द्वोता है कोर उसमें भात्मधासनत फरनेकी मदान,
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