मानव की उत्पत्ति और क्रमिक विकास | Manav Ki Utpatti Aur Kramik Vikas

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Manav Ki Utpatti Aur Kramik Vikas by रमेश सिनहा - Ramesh Sinha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भासब-उत्सत्ति के सम्दस्थ में डारबिस के बिघार 19 हिसी मी प्रस्य जीवित पृष्यबंधी को भपेक्षा मछली गे सस्िप्क बी रचना प्रधिक भादिमजासीन है। उसके मस्विप्कीय प्रर्द-गोले बहुत छोरे होते हैं भौर उनमें प्रति सूष्रम ध्राण-पिण्ड होते है । उनके प्र -गोर्सा के शीच सयमग कोई भ्रोड-जोड नही होते । में जाह उमयचरा (जस-स्वस चरा) बगे के ठपा सरीमृपा [उरण)बर्ग के प्राणिमों में होत है। प्रौर, स्पा-स्पा मस्ठिप्क प्रघिक जटिल हांठा जाता है त्यारपा बे प्िकांस सतत भारी प्राणिमा के भन्दर--जोकि सर्वाधिक उच्च रुप से सगठित प्‌ ध्य्यशो हैं--पदा होते गत हैं! के बाय मध्य मम्तिप्ण मुस्यत॒या भौज्ों की एक जोड़ों (८णाएणा॥ णाष्ट्रट ग्रा18 ) का बसा होता है भौर बह उसके सल्तिप्क का सबसे बड़ा मास (मस्तिप्कीय भर्ड मौसों के घ्रावार स॑ प्राठ मा सौ सुना बड़ा) होशा है । प्रमस्विप्ण तथा मध्य-मस्तिप्ण के श्रीच क प्रस्घर मस्तिण (0८1०८ए8|० 1) के साथ दा भाएं वड़े हुए हिस्से होते है--पर की ध्रोर भ्रस्थि घिर (८७9४५४$) प्र नांच को भ्रोर पोपषकाय (099०0095॥) । प्रस्पि सिर एक ऐसा प्रंग है जो बेयक्तिए-इतिहास की दृष्टि से एकजूसरे धग पाए को प्रौद (91८४) ८१८) के साथ जुड़ा होता है। यह पाएवे की ध्ौश्व प्रजा बरी किरधों में मद बर सकती है भोर बुर पृप्ठबशियों क भ्रन्दर उसका एक प्रकैस्ती इर्टिय के रुप में बिकास हो जाता है। मह साइक्लो-स्टोमेटा (गोस मुलातुगर्भो) के प्ररूर रूपा सरीमृपा (उरप)बग में (स्फनोश्म फ्राइनोसिपैसेस हथ। बारानस मे) पाई जाती है। सबसे प्राचीन जीबाध्म मछलियों टम्यचचरा प्राणियों लबा उरगा के प्रविकोप्त के बपालों में इस पाएई-तेम की शगह मिलती है। इससे हम निष्णर्प निष्रास सकते हैं कि उसजा बिकास हमारे दूर के पूषजों के धन्दर गिम्म बग दे पृप्स्यंश्चियों के प्रन्दर हुप्रा पा! पोपकाय घौर भी प्रधिक दिलचस्पी को चोर है) गोल गृतावुार्गों [(०0०४0- प/018) में मिसमेबरालों इस इग्द्रिय को बनाबट के भाषार पर इखने मे (लास तौर से मीमबैधि-प्रशाति (795०८) के प्रम्दर मिपनेबाली उसकी उस बगाबट के प्रापार पर देखते से शिसमें कि पोषषगब की लाख प्राँखों के सामन सिर में एक छिद्र के रूप में बाहर हिष लगी है प्रौर उसका दूसरा प्रन्शर का भिरा प्राह्रर-गसी बे साथ जुड़ा होता है) मापूम होता है झि इसगी उत्पत्ति मी बहुत प्राचीन है । पापकाय भ्राहार मास्त (जिसमें हिः बहू मो शामिल है) हपा गछफड़ं के रंज बे बापर (०ाशा४७) जाप से पनिए रूप से सम्दरिशित है बसता प्रग्र-माग घाध मुस की गुड के एक झागे निकसे हुए झाझ सेरह्पस्द भाय है। पापकाय दे: पीऐ बग भाग प्रम्दर-सस्ठप्ज' वी रहती के मित्रते सबुदित सिर स बना है। पोपशाय शर प्रस्पिमिर शी दिसी समय पग्पस्द रहस्पपुण प्रैपों मे घिबदी होती थी। प्रपते गाल में डबार बाय सा यहां तब विम्दास या कि प्रम्धिसिर में भारमा मिगास कए्णी हैं। परस्तु उतझे प्रश्र रहस्य जो कोई बोज मही है. दब ऐसे प्रत्पन्ल प्राचीन प्रंग




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