वल्लभाचार्य और उनकी पुष्टिमार्ग | Vallabhacharya Aur Unki Pustimarg
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
0.94 MB
कुल पष्ठ :
42
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)' (१५: 2]
होते हैं। वे सबसे अच्छे - चर ; सुन्दर. वस्त्र पद्चिनुते
हैं. और अपने शिष्यॉप्र वे. बेहद .'इकमत- चलाते
हैं, भ्ौर वे शिप्यगण... उनको भाँत भांतके .पकवान
( मिष्टान ) खिलाते हैं। वे अपने शिप्योंको तोऩ वार
समपंण देते है, भौर उस समर्पणके. लिये .उनके शिष्य
लोग अपना तन, सन और धन अपने, गुरु अर्थात्
गुसाइयोंको श्रपंग करते, हैं,.;'“'इस मतके लोगोंके
विचारानुसार शुसाईजी सहाराजांको जो मान दिया
जाता है वच् केवल ' उनकी पवित्नता और विद्याका
कुछभी विचार किये बिना ,दो बंशपरम्प्रराके कारण
दिया जाता है। वे वइत करके कुक्त: भी मानके योग्य
नहीं .है। तथापि उनके शिप्यवर्गसे उनको कुछ कम
' मान नहीं सिलता ।”
गोखामौयांकी ठो'गकी परोल : खोलनेवाले भारत
'प्रसि्द खर्गीय- खासी वाकटानन्दकी नामसे कौन
विद्दान परिचित नहों है। उन्दों ने अपने पुस्तकमें
लिखा है-कि :--
'“इमारे घरानेके, पूवंज इसो सम्प्रदायके शिष्य होते
आते थे उसो रोतिके. अनुसार -मैं -भी बाल्यावस्थादोमें
इसी सम्प्रदायक[ ;शिप्य हुआ और कई :मददाराजो'
भ्र्धात् गोशाईयो के पास सेवामें भी -रहा और इनके.
बाहर भौतर को. समस्त प्रकाश्य व. गुप्त लोलाये' * देखी
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