वल्लभाचार्य और उनकी पुष्टिमार्ग | Vallabhacharya Aur Unki Pustimarg

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Vallabhacharya Aur Unki Pustimarg by श्री वल्लभाचार्य - Shri Vallabhacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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' (१५: 2] होते हैं। वे सबसे अच्छे - चर ; सुन्दर. वस्त्र पद्चिनुते हैं. और अपने शिष्यॉप्र वे. बेहद .'इकमत- चलाते हैं, भ्ौर वे शिप्यगण... उनको भाँत भांतके .पकवान ( मिष्टान ) खिलाते हैं। वे अपने शिप्योंको तोऩ वार समपंण देते है, भौर उस समर्पणके. लिये .उनके शिष्य लोग अपना तन, सन और धन अपने, गुरु अर्थात्‌ गुसाइयोंको श्रपंग करते, हैं,.;'“'इस मतके लोगोंके विचारानुसार शुसाईजी सहाराजांको जो मान दिया जाता है वच् केवल ' उनकी पवित्नता और विद्याका कुछभी विचार किये बिना ,दो बंशपरम्प्रराके कारण दिया जाता है। वे वइत करके कुक्त: भी मानके योग्य नहीं .है। तथापि उनके शिप्यवर्गसे उनको कुछ कम ' मान नहीं सिलता ।” गोखामौयांकी ठो'गकी परोल : खोलनेवाले भारत 'प्रसि्द खर्गीय- खासी वाकटानन्दकी नामसे कौन विद्दान परिचित नहों है। उन्दों ने अपने पुस्तकमें लिखा है-कि :-- '“इमारे घरानेके, पूवंज इसो सम्प्रदायके शिष्य होते आते थे उसो रोतिके. अनुसार -मैं -भी बाल्यावस्थादोमें इसी सम्प्रदायक[ ;शिप्य हुआ और कई :मददाराजो' भ्र्धात्‌ गोशाईयो के पास सेवामें भी -रहा और इनके. बाहर भौतर को. समस्त प्रकाश्य व. गुप्त लोलाये' * देखी




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