चरित्रगठन | Charitra Gathan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पद्ल्ला परिच्छेद । श्डं
ने पाँच जार रुपयों, का. मिट्टो के .बराचर समझकर -अपनी
निलेमिता, सत्यवादिता, साधुता और कर्तव्य-बुद्धि का जैसा कुछ
परिचय दिया है, इच्छा करने से तुम-लोग भी अनायास, वैसे-वैसे
कामों के द्वारा सुयश श्राप्त.कर सकते दवा, विश्वासपात्र.घन सकते
है। और अपनी उन्नति करते हुए संसार फा भी वहुत कुछ उपकार
कर सकते हो । न र र्पं
मनुष्यता हूँ
मनुष्य हाकर भी मनुष्यता का ज्ञान होना कठिन, है.। धन
उपाजेन करके कुट्म्ब-पालन करने से अथवा अ्रधिक ,धन-सम्पत्ति
का खामी होकर आमेदप्रमोद फे साथ जीवन-निर्वाह करने ही
से कोई मनुष्य नहीं. फहला सकता । न झनेक शात्र पढ़कर ही
फोई मलुष्य दोने का दावा कर सकता है। मनुष्य का लक्षण केवल
धनवान बा विद्वान द्वोना.दी नदीीं है। यदि ऐसा ही.द्वोता वे
सप्रय-समय पर कितने दी ,धन-कुबेरों का.आऔर कितने हो शास्रक्ल
विद्या-विशारदों का लोग पशु कद्कर क्यों ,तिरस्कार करते .?
“लिखने-पढ़ने से क्या द्वागा, उनमें मनुप्यता का बिल्कुल प्रभाव
हैं 1!” इस प्रकार का वाक्य-प्रयोग ,कभो-कभी त्ोगों के मुँद्द . से
सुना जाता है। इससे समर लो कि घन-सस्पत्ति और विद्या के-
साध मलुष्यता का सम्बन्ध नाम्न-मात्र का है। मनुष्यता- एक और
दी पदार्थ है । झात्मा के साथ इसका-घनिष्ठ सम्बन्ध है | जिन्हें
प्रात्मव्ष ऐ उन्हीं का मलुध्यता:प्राप्त द्वोती, है ।. आत्मसंयम और,
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