फैसले | Faisale
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
164
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजन जी, इसके लिए वहुत-वहुत ....!
अजी नहीं, इसमें ततलीफ कसी ?” राजन बोला, “वी आप लोग
क्या किसी खास काम से वही जा रहे है ?”
“नहीं । दर्पों ?” देशराज ने कहा 1
“कया मैं आप दोनों को चाय पर वामन्द्रित कर सकता हूँ ?” राजन
ने ज्यो ही वह पूछा, भीमा और देशराज दोनों समझ गए हढि राजन ने
अस्पताल तक जाने की तकलीफ यों ही नही उठाई थी । उलूर इसके पीछे
कोई राज था, जो अब खुलने वाला था।
भीमा और देशराज ने एक्लयूसरे की ओर गहरी निगाह से देवा,
फिर सहमति में सिर हिला दिया।
राजन बोला, “लेकिन ...आप दोनों का स्वागत मैं किसी मर्हसे होटल
में नही कर सकूंगा। अपन तो हमेशा मुफलिसी में ही रहते हैं। दूसरों का
भला करना ही अपना काम है और--आज की दुनिया में--दवतरों कया
भला चाहने वाले हमेशा तकलीफ महते हैं।”
“कही भी बढ पाएँगे। बरे, किसी रेलब्रे-स्टेशन में, खढे-नठड़े भी चाय
पी जा सकती है। बातें करते के लिए वहाना ही तो चाहिए। दे
देशराज ने
उल्लास के साय कहा। न॒ जाने क्यों, उसे आशा की हल्की दिरफ-्सी
दिलाई दे रही थी। अश्नश्प राजन कोई व्यावसायिक प्रस्ताव रखेगा ।
भीमा की दंगलों से विद्ययमी के बाद देशराझ, भीमा और चम्पक, तीनो
को व्यावसायिक प्रस्तावों की ही प्रतीक्षा थी ।
पता नहीं, चम्पक इस ववत कहाँ भठक रहा है। राजन का प्रस्ताव
जब उसके सामने रखा जाएगा, अवश्य उसे राहत मिलेगी ।
बिन्तु अभी से इतनी दूर तक क्यो सोचा जाए २ देशराज ने अपने
चेखबिल्लोपन को तुरन्त पहचान लिया। पता नही, राजन का प्रस्ताव क्या
हो। उस प्रस्ताव को, पता नहीं, स्वीफार किया भी जा सके या नहीं ।
राजन कह रहा था, “सड़े-वर्ड तो नही, कही वैठ कर ही तसल्त्री से
चाय पीएँगे 17
एक सस्ते डिपार्टमेटल-स्टोर का दरवाजा सामने ही था। वहाँ दंविश
जहूरतों की चीजें मिलती थी--और चाय भी ! तोनो ने वहाँ प्रवेश
User Reviews
No Reviews | Add Yours...