शभूदयाल सकसेना व्यक्तित्व एवं कृतित्व नाट्यकला और कृतियाँ | Sambhudayal Sakasena Vyaktitva Avem Krititva Natyakala Aur Kritiyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Sambhudayal Sakasena Vyaktitva Avem Krititva Natyakala Aur Kritiyan  by डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. रामचरण महेन्द्र - Dr. Ramcharan Mahendra

Add Infomation About. Dr. Ramcharan Mahendra

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ १६०) रुपये दिये! बह लेकर प्या शोर क्षाम तक नहीं शौंदा। जब देर होगई हो पाषा धतका । ध्राप्रिर कहाँ पया ? पूछताए दी का रही थी कि प्स्ती भौकर का संदेपा पुलिस सेशन से प्रापा कि पृक्तिस से घुभारिों पर छापा भारा था शोर प्र्य शुप्ारियों के साथ उसे भी पकड़ से पु थो। सदसेना छी को प्रथ विश्वास हुप्ा कि बास्तद सें बह सुप्तारी ही था प्रौर छचर घरतते पहले सी बुष्चा देला होपा। शो दिन बाद जब बह पुशतित से पट कर छरतेता छी के पाठ प्रापा तो बहुत भूछ्ता प्ौर प्यासा था। प्रसते झ्पतै सारे जुर्भ को एदौकार कर लिया । प्रद कया किया जाय? सकसेतानी ते शहां “प्रथ तुष्हें हम भोकर नहीं रखेंगे । बह बोला प्रद हम रहां जाय? पुकषे हैं। कौम हुए शभौकर रदेपा ?! सकसेता क्री का सागजा डरा प्रौर कहने लपा, “महू प्पत्ति झऋझतरनाक है । इसे निकाल दीशिए । राधि में ल लाने क्‍या कर पुज्रे। बहू डते शुझरएते के पक्त में लु प(। रकतेता की ले कहा धष्प्, ठहर राप्रो ।” इस प्रकार बह हो तीन दिन प्रोर रहा । भौर चाते छप्तय एक दृष्यातबार मै सकतप्ेसा थी हे ताप से एस सन अऔरीती से पया | बहू तो उसे देश कर रबाता हो गया। दृकागगार प्रापा प्ौर जतते और के शाम छोपे । के चकित हो गये । इतती इपा इतता घोला। पह हो दोगों पर अलते दाता जानवर कैसा घोश्ाबाज हो सकता है। पभ्होनि भृकाशबार को झाएथापन दिपा भोर उस ब्यत्ति की दताप्न प्रारंभ शी । एक दित पकापक्ष दही तौकर श्रापा प्लोर पेज पर २००) ६० रक्ष कर कहा, “पमरह छीजिए प्रापके दरुषये। पहले प्लोर बार के, इस रुपये प्याज के ।' सब अछ्ित थे। हैरात बे। सकतेगा लो बोले, “हुम्हारे प्पाण के एपये हम गहों सेते। लेकित पहुले पह बदाप्रो दि ये सब क्षपऐे तुप शहां से लाये ही ? उठने कहा हुम घर से जाहर छुपे लापे हैं। हमे भ््पका विश्वास झो दिया बा। उसी का पृस्प दे रहे हैं। प्रापके पहां ही शोकरी करण अहरे हैं। उर्होति कह, “तुम हारे शाप से उपार अती से पए 1 एप्ने दृकाभशार के इपये ही चुझाये । इसके दाद भी बह शिरप्तर लोकरों का प्रयत्न करता रहा । अब उप्तके घर सै लाए हुए छारे रपये समण्य हो पए, हो! प्टए एुक दिल प्राएया भौर भोहर रफ़्न के ततिए प्राप्रह किपा | ल रफ्ते दर इूपधाप सकसेगा छो के कदरे ले इसकी घड़ी उठा ले एया । इस हूपय यह प्यक्ति छैस में है। लेकिन कमौ उरहोगे उससे बणा ले की । दे भरुष्पों की र॒बृत्तिपों पर विध्दास करते हैं। वर्ित ते बृछित ध्यक्ति मैं भी ईपदरप्प है। उत्तरी प्रष्याइपों वर उनझा पूर्ण दिए्याग्र रहता है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now