महात्मा कबीर | Mahatma Kabir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समकाजीय परिस्थितिर्षाँ
था। अतण्य, जन-समात्र की आत्मतुष्टि उससे न हुई । श्री
रामानुजाचाय मे विशिष्ट दतवाद चलाया जिसमे सगुग्योपासना
फो स्थान मिला । इन आदः्य्णों की परम्परा के कारण वेप्णव-
क पौदपर्स थे
घम का देश में प्रसार हो रह्दा था। प्रौद्धघम के नष्ट हो जाने
पर भी उसकी महायान शाएा हास प्रचारित मूर्ति पूजा का लोप
न हो सका था तथा शाक्त, गोरसपंथ श्ादि सम्भदाय भी टश मे
चल रहे थे। जैन घम का खोत भी अपने मथर प्रवाह से घट
रद्दा था । मूर्तिपूजा ण्य सगुणोपासना से साधारण जनता की
आत्मतुष्टि होनी आरम्म हो गई थी। पर महमू” गजनयी की
गदों के प्रदार ने सहस्नश अन्धविश्वासी दिल््दुओं फी श्रँसों के
सासने सोमनाथ फे सदिर में दुएदुलन भगवान् फी सूति के
डुक्ड़े टुकड़े फर डाने और मूर्तिपूजा को गहरी चोट पहुँचाई ।
८ मंदिर पर भद्रि दटते थे, मक्तों के रफ से प्ृथ्यी सींची जाती
थी, पुजारियों की आणाधार धनराशि लुट जाती थी तथा राज-
भदिर में मूर्तिखण्ड वियर्मियोंऊ पुराणों से गेंद की तरद ठोफरें
साते थे। परन्तु वह सत्र कुछृत्य थे प्रम्तर सूर्तियाँ अपनी
निश्येष्ट एवं मिश्वल अँखों से देखा करती। द्वोपदी का चीर
चढ़ाने वाले ने एक पट्टी भी भक्तों के श्रण्णों पर न बाँधी | भयानक
दानवों को च्ण भर में मार डालने याले ने आततायियों के शरीरों
पर अपने अस्तर-सण्डों से भी प्रद्वार न किया। परिणाम यह
हुआ कि हिन्दू-समाज मूर्ति-पूजा का अवलभ्य अ्रधिक समय तक
न ले सका। साथ दी मूर्तिपूजा हमारे विजेताओं के घर्म के सर्वया
प्रतिहल थी, अत इसका प्रचार उत्तरोचर क्षीण होने लगा। *
हिन्दुओं की प्रतिभा एव शक्तिफे वियास के सय द्वार बंद कर
दिए गए थे। उत्तका जीवन निरानन्द हो गया था। उनका राज्य
है.
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