चमकते सितारे | Chamakate Sitare

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Chamakate Sitare by देवेन्द्र मुनि शास्त्री - Devendra Muni Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आ्यरक्षित १७ प्रश्नायरक्षित की सेवा में उपस्थित हुए, उन्होने वार्तालाप शक प्रस मे कहा-ज्ञात होता है कि जेन-साधना तरपिद्धति मे ध्यान का कोई भी महत्त्व नही है। (४ आर्यरक्षित ने कहा--तुम्हारी यह घारणा अन्त. 110 | तुम्हारा ही बन्धु पुष्यमित्र गजव का ध्यानी है फृधिसके कारण ही वह दुवेल दिखाई दे रहा है । उन बौद्ध अनुयायियों ने उपहास करते हुए कहा 'श--सरस आहार के अभाव मे ये कृश हो गये होगे, कही किक्रोई ध्यान की साधना से कृश होता है ? 1 आयेरक्षित ने प्रतिवाद करते हुए कहा--जैन (धासन में घृत आदि सरस आहार की कोई कमी नही पहै। इसे खूब ही सरस आहार प्राप्त होता है किन्तु दिप्रतत अध्ययन और ध्यान-साधना में लगे रहने के 'हेकारण यह कृश है। सरस भाहार करने के बावजूद कली योग की साधना से यह कृश रहता है। यदि तम्हें ए1४रे कथन मे विष्वास न हो तो त्तम इसे अपने आवास पूेंप्ते रखकर निरन्तर स्निग्ध भोजन कराकर मेरे कथन [की वास्तविकता देख सकते हो । |. बन्धुजनों के अत्यधिक आग्रह से आचाये आये- रक्षित ने दुबेलिकापुष्यसित्र को उनके वहाँ पर रहने ६ का आदेश दिया । निरन्तर सरस आहार करने पर भी (' जब ये दुबंल ही रहे तब उन्हें आचार्यदेव के कथन पर




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