महाभारत भाग ४ | Mahabharat (vol - Iv)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22 MB
कुल पष्ठ :
984
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६.४ ):
गया । यह भारत में फिर अपना साम्राज्य स्थापन करने का स्वप्न
देखता ही रहगया और अन्त में रोता २ संसार से विदा हुआ ।
” आारत-विजेता, शदाबुद्दोन गौरी, प्रथ्वीराज से वार २ पराजित
हुआ और छोड़ दिया गया । अन्त में कन्नोज के राजा जयचन्द्
की. फूट से उसे प्ृथ्वी-राज पर विज्ञय नसोब हुई।
भारत-सम्राट अकबर के साम्राज्य की नीच को सुदृढ़ करने
चाले मानसिंह जेंसे- भारतीय राजपूत ही थे | इन राज-पूत्तों ने दी
मुगत्न-साम्राव्य की जड़ को पाताल. तक पहुंचाया था। उस समय॑
भी. भारत की प्रतिष्ठा, मान, मयोदा के रक्षक, प्रातः स्मरणीय,
शणा प्रताप, जेंसे हिन्दू-केशरी विद्यमान थे ।
इन्द्र के समान वेभवशाली, वादशाह शाहजहां के साल्ते,
सल्लावतखां की गन भरे दरवार में घड़ से उड़ा देने वाले,
दिल्ल-चल्ते राजपूत इस कछुलमय में भी थे । -
ओग्इझजब के शासनंकाल में पच्जाव में सिक््खों ने, राज-
पृत्ताने में राजपूतों ने, दक्षिण में मरहठों ने शिर उठाया और
अन्त में मुगलिया साम्राब्य की पात्ताल तक पहुंची हुई जड़ों को
चंखाड़ कर फेक दिया। आज समय-चक्र ने चक्तर खाया और
संसार को _सम्यता-सिखाने-वाल्े, रण-तास्डव-निपुण, उन्हीं
न हिन्दुओं की महिलाओं की इज्जत, चक्तकर में पड़ गई है ।
इनके बच्चे पेट की आग से करुणा-स्वर में रो रहे हैं। अधिऋ
क्या रोना है १ इस भूत्तल-शायी हिन्दूजाति के, जो चाहता है।
नही दो लात लगा देता है । थे
यह सब क्यों है ९ क्या कोई अकारण शत्र, हसको खताता
रहता है नहीं; यह तो: हमारे. ही दुष्कर्मों का अवश्यम्भावी
परिणाम है |. ह
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