मोहन - मोहनी | Mohan-mohini

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Mohan-mohini by कन्हैयालाल - Kanhaiyalal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह मीहत-मोदिवी # ; श्प सत्र रुचु है। फिर सी आप साग हा खाभ फरमाते द॑ ख्रापदा फ्या चाड़िये ऋम! किस बात री हैं माधर--अरी मुझे यद सब कूछु मालूग है, इसस उच्यो का क्या साहा कय शभा व्याद् की आपश्यक्ता नहीं है। सात्ता-तो, ध्स किस खाल का आयश्यकता है । मसाधर--इसलका इस समय पिद्यारम्म कराना, खूब पहागा, लिखा[पा, सदाच्ार घिखापा, व्यायाम वा शोक दिल्वागा, ब्रह्मचर्यरा मदत्य यतलागा, पुर्ट यनिष्ट बनाया धभ्योग इनका भविष्य जांधत उच्च श्ान्शं झाप बगागा। मागती--( हंसकर ) शर बाह | यह भा झापन एप दा बहा | धग्या उस पढ़ा ल्िस्वावर पौररा करधयगा ऐ, फरसरस सिखा कया शज़ाड़ें में राउवागा दे? थअह्मचर्य सिग्या क्या साधु बपयाए दै ! सदा प्यारा पुत्र यदि बिगा पढे हा दंगों दाथा से घर लुटाया छर तो भौ सात पाढ़ा तक घर से धांत | तो४+र चाकर जहाँ उसका प्ताया गिरे खूब गिरात हा सैयार रहते हैं। ऐसा स्थिति में आपका उसके शरीर ब) चिता भी 1 छच्मा चादियेव मधप-अरे तुम आम कैसा बातें बपजला हा | देश का दशा छुम्हें मालुम पह्दी | आभ हमारा क्मओऔरा द कारण दा *( गुझों छाश ) दमारा यट्व बरिया बहाई ज्ञाता हैं, मा *। अक्ूर दाता है।धर्मप्राण देशगर्तों का दृत्यार्थ ढासा है *.. दूबताओं वा अझपगानहाता है। फिर ससार में ह॒द्धि




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