मन परदेसी | Man Paradesi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अब और दर-दर की ठोकर हम नहीं खाएंगे। अब और मैं तुम्हें दाक्टरों
की नज़रों में जलील नहीं होने दूंगा---एक कुंवारी लड़की, जिसके पेट में
बच्चा था ! हर डावटर फीस लेती | मेरा मुआयना करती और जब हम
उसे बताते कि मैं कुंवारी हूं, यूं मेरी तरफ देखती जैसे मैंने कोई पाप किया
हो। कड़े का ढेर। किसीकों मेरी आप-बीती पर यकीन न आता । मेरी
कहानी सुनकर, इन्द्र को कोई मुंह लगाने के लिए तैयार न होता। हर
कोई यही सोचता, कुसूर उसीका था। एक दिन तो एक डाक्टर ने हमें
धमकी दी---अगर आप एक मिनट और मेरे क्लिनिक में नज़र आए तो मैं
आपको पुलिस के हवाले कर दूंगी ।
/ उस दिन इन्द्र ने पक्का फ़ैसला कर लिया कि वह मेरे साथ ब्याह
कर लेगा। चाहे कोई भी क़ीमत देनी पड़े, वह मुझे और ज़लील नहीं
होने देगा। ः
/ अम्मीजान ! आज मैं उस इन्द्र की बीवी हूं।
' मुझे अभी आपको और चहुत कुछ बताना है। डाक का वक़्त हो
गया है, इसलिए यह चिट्ठी यहीं ख़त्म करती हूं । आपकी वेढी, सीमा । ”
1
वेगम मुजीव अभी चिट्ठी पढ़ ही पाई थी कि शेख मुजीव का बड़ा
भाई शेख़ शब्बीर दनदनाता हुआ उसके कमरे में आ घुसा । लाल-पीला
हो रहा था। उसे अभी-अभी ख़बर मिली थी। वेगम' मुजीब ने चिट्ठी
को अपने तकिया के नीचे छिपा लिया । उसका जेठ निहायत दकियानसी
विचारों का जागीरदार था, कट्टर फ़िरकापरस्त । है
“ मैंन कहता था कि लड़कियों को पढ़ाने की कोई ज़रूरत नहीं। इन्हें
किसीके पलले बांधकर अपनी जान छुड़ाओ। अब तुमने देख लिया कि
आजकल की औलाद क्या गुल खिलाती है ? एक तुम्हारा मियां, मुंह-
जोर था, सारी उम्र अपने-आपको धोखा देता रहा। हिन्दू का पिट्ठू बना
२४ / मन परदेसी
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