भगवान महावीर की साधना | Bhagawan Mahaveer Ki Sadhana

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Bhagawan Mahaveer Ki Sadhana by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पा साधना ) (४) तेरद मास तक भगवान्‌ न रस बन्न यो नहीं छोड़ा। इसके घाद उसको छोड़फर अचेलऊ हो गये । (५) चलते समय भगवान्‌ अपनी दृष्टि सामने की ओर सादे तीन हाथ मार्ग पर जमाए रखते थे। वे बडे सामधान होकर चलते थे। उस समय उन्ह लेसर्र तालय डर ज्ञाते। श्रत ये भगवान पर पथर आरि फ्कत और चिल्लाते । (६) फ्मी कभी भगवान को गृहरथा तथा अन्य ततांर्थिकों से मिप्रित घंसतियां में रहना पडता था! वहाँ उनस श्लियाँ सोग के लिए प्रार्थना करती था। परन्तु भगनान्‌ श्वियों को सवम में दाघा पहुँचाने पाली सममत ये सलिए ये कभी अद्वाचर्य से दिचन्ति नहीं हुए । ऐसे समग्र में भी वे आत्म चि तन में ही लीन रहने दे । (७) गृहस्थों क ससर्ग से दूर रहकर भगवान्‌ मद्य भ्यान-रतर रद्ते थे । पूछने पर भी न दोलत थे अपने ही दस पर चलते ये ३ सरक्ष रभभावी भगवान्‌ सदा सयम साय फ ऋष्टसर गहते थे




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