Book Image : सामाजिक अनुसंधान  - Samajik Anusandhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही बैद्निक अनुसधान विशेषाएँ अकार एक एद्धतियाँ के अध्ययन के लिये अपर्याप्त बताया । 1848 में उसने सामाजिक अनुमधान के क्षेत्र में सकारात्मक विधि को मस्तादित दिया । उम्ने साना कि सामाजिक घटनाओं वा अध्ययन तर्क या धार्मिक सिंद्धाननों या तात्विक सिद्धान्तों के द्वारा नहीं क्या जाना चाहिए बल्कि समाज में जाकर तथा सामाजिक सम्बन्धों को सरचना के द्वारा किया जाना चाहिए। उदाहरणार्थ उसने निर्धनता को समाज में हावी कुछ सामाजिक ताकतों के परिप्रेक्ष्य में समझाया । उसने अध्ययन वी इस विधि वो वैज्ञानिक वताया। काम्टे ने प्रत्यक्षवाद कहे जाने वाली वैज्ञानिक विधि को ही सामाजिक अनुसधान का सबसे उपर्युक्त साधन माना । इस प्रकार नवीन कार्यप्रणाली ने अनुमान और दार्शनिक उपागम वो अस्वीकार कर दिया और आनुभविक आक्डों के सग्रह पर प्यान केन्द्रित किया और इस प्रकार म्रत्यक्षवादी पद्धति बनी जिममें उन्हीं विधियों के प्रयोग पर बल दिया गया जो प्राकृतिक विज्ञानों में अपनापी जाती हैं। 1930 तक प्रत्य्वाद सपुक्त राज्य अमेरिका में पनपने लगा और धीरे धीरे अन्य देशों ने भी इस प्रवृति का अनुगमन किया । चाम्टे के प्रत्यक्षवाद (कि शान केवल इच्दियानुभवों से हो मराप्त विया जा सकता है) की आलोचना प्रत्यक्षवाद के आन्रिक और वाहा दोनों ही धेत्रों में हुई। पत्यशवाद के अन्दर हो तर्वमगत प्रत्यक्षवाद नामक शाखा का बीसवीं सदी के आर में प्रादुर्भाव हुआ जिसका दावा था कि विज्ञान तकसगत तथा अवलोक्नीय तथ्यों पर आधारित होता है और किसी भी कथन वी सत्यना इच्दरियानुभवों द्वारा इसकी पुष्टि में निहित होती है । प्त्यक्षवाद के बाहर भी कुछ विचार पद्धतियों विकसित हुईं। इसमें प्रमुख थीं--प्रतीवा्मक अन्न यावाद (5डग्फंघ0८ कप धा30८00015ा0) घटनान्ियावाद (िट्रणण्८णण 06१0 लोक्पद्नि विज्ञान (8050सा८1800०10)) । इन विचार पद्धदियों मे प्रत्यक्षवादी वार्य अणाली और इसके द्वार किए गए सामाजिक यथार्थ बोध (र८१८४००ए) पर मश्न थिह लगा दिये। फ्रेंकफर्ट और मार्क्सवादी विचार पद्धतियों ने भी प्रत्यक्षवाद वी तोव़ आलोचना बी। किन्तु 1950 वे 1900 के दशवीं के वाद से विद्वानों द्वारा अनुभववाद को अपिर्व स्वीकार किया जान लगा । आड दुठ लेखक अनुसपान में नवीन चरण के उद्भव वी बात बहने लगे हैं और वह है उनर अनुभववादी अनुम धान, जिसवा यह बियर उल्लेखनीय है कि केवल वैज्ञानिक पद्धति ही शान, सत्य और दैधता की स्रोत नहीं हैं (मसरानैकोश सोशल रिसर्च 1998 5) । अन आज समाजशास्रीय कार्दप्रणाली अ्रत्यक्षवादी वार्यप्रभाली पर बिल्कुल आयारित महीं है जैसा कि पहले था। किन्‍नु यह विदिध पद्धतियों और विधियों का समूह वन गया है जो सभी प्रकार के सामाजिक अनुसधघान में मान्य हैं । इस प्रकार, हमारे पास सामाजिक विज्ञान में अनुमधान के दो उपागम है वैज्ञानिक आनुभविक पद्धति और प्राकृतिक घटनाह्रियावादी पद्धति (ेवर्ट बी बर्न्स इन््रोडक्शन टु रिसर्च 20003), चैद्ञानिक आनुभाविक पद्धति में सामान्य नियम या सिदधानों वी स्थापना के प्रयत्न में परिमायात्मक अनुसधान पद्धतियों वा प्रयोग छिया जाता है । यह उपागम जिसे जोमोदेटिक (य०००८४८) भी कहा गया है, मानता है कि सामाजिक यदार्थ वस्तुपरक और व्यविन से बाहर द्वितीय उपपगम (प्राकृतिक घटनाक्रियावादी पद्धति) व्यक्ति के आत्मप्ें




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