रचनामुबाद कौमुदी | Rachana Kaumudi

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Rachana Kaumudi by कपिलदेव द्विवेदी - Kapildev Dwivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्रौढ रचनाजुवादका सुदी (नियम ३२-४०) शब्दकोष-१ ० ०+- २५७ १२५] अभ्यास ५ (व्याकरण) (क) साधुः (सजन), मत्युः (मृत्यु), पासः (चूछ), असः (प्राण), सानुः (चोटी), गोमायुः (गीदड) | (६) । (ख) सद्‌ (बैठना, खिन्न होना), प्रसद्‌ (प्रसन्न होना, स्वच्छ होना, सफल होना), विषद्‌ (हुःखित होना), आसद्‌ (पहुँचनां), अत्यासदू (समीप आना), निषद्‌ (बैठना), अवसद्‌ (नष्ट होना), उत्सद्‌ (नष्ट होना), उपसदू (पास जाना), स्वद्‌ (अच्छा रूगना), प्रतिश्रु (प्रतिज्ा करना), अवहननम्‌ (कूटना) । (१२)। (ग) कृते (लिए)। (१)। (घ) प्राशः (ऊँचा), आगन्तुः (आगन्ठ॒ुक) प्रभविष्णः (समर्थ, स्वामी), स्हयाद! (इच्छुक), द्वित्राः (दो तीन) पद्चपाः (पॉच छः) | (६) व्याकरण (गुरु, रूट , चतुर्थी) १ गुरु शब्द के पूरे रूप स्मरण करो | (देखो शब्द० स० ९) २, सद्‌ और पा धातुओं के रूप स्मरण करो | (देखो धातु० ८, ११) नियम ३२--(कर्मणा यममभिग्रैति स सम्प्रदानम्‌ , क्रियया यमभिप्रेति०) दान आदि कार्य या कोई क्रिया जिसके लिए, की जाती है, उसे सप्रदान कहते है | नियम ३४३--(चतुर्थी सम्प्रदाने) सम्प्रदान मे चतुर्थी होती है। जैसे--विप्राय गा ददाति। युद्धाय सनद्यते (तैयारी करता है) | विद्याये यतते | पुत्राय धन प्रार्थयते । नियम ३४--(रूच्यर्थाना प्रीयमाण.) रुचू (अच्छा छूगना) अर्थ की धाठओं कै साथ चतुर्थी होती है। हरये रोचते मक्ति.। यद्‌ भवते रोचते | बाढकाय मोदक रोचते | नियम २३०--(धारेरुत्तमर्णः) घारि धातु (ऋण लेना) के साथ ऋणदाता मे चतुर्थी होती है| देवदत्तो गमाय शत घारयति (राम का सौ रुपए ऋणी है) । नियम ३६--(स्पहेरीप्सितः) स्पृह_धातु तथा उससे बने शब्दों के साथ इष्ट वस्तु में चतुर्थी होती है। पुष्पेभ्यः स्पृहयति (फ़्छो को चाइता है) | भोगेभ्यः स्पृह्यालवः । नियम ३७---कुधदुहेष्यासयार्थाना य प्रति कोपः) क्रुधू , द्रह_, ई्य_ , असूय अर्थ की धाव॒ओं के साथ जिस पर क्रोध किया जाए, उसमे चतुर्थी होती है। रामः मूर्खाय (मूर्ख पर) क्रष्यति, द्ुह्मति, ईर्ष्यति, असूयति | सीताये नाक्रुब्यन्नाप्यसूयत । यदि क्रुध्‌ और द्रुह_ से पूर्व उपसर्ग होगा तो द्वितीवा होगी। क्रम अभिन्रुध्यति अभिद्रह्मति | नियम ३८--प्रत्याडश्या भ्रुवः०) प्रतिशु और आश्रु धातु के साथ प्रतिज्ञा करने अर्थ में चत॒र्थी होती है | विप्राय गा प्रतिश्णोति(गाय देने की प्रतिशा करता हैं) | नियम २९--(तादर्थ्यें चतुर्थी वाच्या) जिस प्रयोजन के लिए जो वस्तु या क्रिया होती है, उसमे चतुर्थी होती है | मोक्षाय हरि भजति । यूपाय दारू | काव्य यशत्ते | नियम ४०--चतुर्थी के अर्थ में 'अर्थम! ओर “क्ते' अव्ययों का प्रयोग होता है | अर्थम्‌ के साथ समास होगा और छूते के साथ षष्ठी | मोजनार्थन्‌ , भोजनस्य इते |




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