सप्ततिकाप्रकरण | Saptati Ka Prakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : सप्ततिकाप्रकरण - Saptati Ka Prakaran

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about फूलचन्द्र सिध्दान्त शास्त्री -Phoolchandra Sidhdant Shastri

Add Infomation AboutPhoolchandra Sidhdant Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रस्ताचना ५ मूछ याया चरीड़े मानी छीघी छे परन्तु ए्‌ ग्राथाने च्र्णिझ्रारे पाठतरँ छख्तीमे पाठान्तर गाथा वरीक्ले नि्देशी छे ; एटले 'चए पशुवीधा सीखर्घा गाथा घूलनो नंगी एु माटे छूणिकारनो सचोड पुरावों द्वोवाथी पित्तरी प्रररणनी ७३ ग्राधाशों घदित थाय छे । भाष गाथाने मंगल ग्राथा तरीके समनवाधी मित्तरीनी सित्तेर गायाओ थहें जाय छे 1? किन्तु इस गायाके झातमें केयल 'पादतर' ऐसा लिखा होनेते इसे मूल गाया न मानना युक्त ग्रतीत नहीं द्ोता । अब इस पर पछ्णि झौर चाय मछयगिरिकी टीका दोनों हैः तब्र इस मूछ गाया मानना ही उचित प्रतीत होता है। दमने इसो कारण प्रस्तुत सस्करणमें ७२ गायाएँ स्वीडार को है । इनमेंसे भन्‍्तफी दो गाधाएँ विपयकी समाप्तिक्े याद आाई हैं शत्त उनझी गणना नहीं करने ९२ म्र धक्का घित्तरी यद्द नाम साथक ठद्दरता है | ग्रन्थकर्ता--सप्ततिकाके रचयिता कौन थे, अपने पावन जीवनसे किस मूमिको इन्द्रोंने पवित्र किया था, इनके माता पिता कौन थे, दीक्षा गुरु और विधागुरु कौन थे, इन सत्र प्रश्नोंडे उत्तर पानेके यतमसानमें कोई साधग उपलब्ध नहीं हैं। इस समय पघप्ततिका और उसझी दो टोझाएँ इमारे सामने हैं। कर्ताक नाम ठामके निर्णय करमेमें इगसे किसी प्रकारकी प्द्दायता नदी मिलती 1 सद्यपि स्थिति ऐसी है तथापि जब हस्त शतककी भनितिम १०४ व १०५ नर्॒रवाली गरायाशोंरे सप्तविक्राकी मंगल याथा भौर भ्रीतम गाथाका क्रमश मिछान करते हैं तो यद्द स्पीकार करनेछो जो चादता है कि बहुत सम्भव है कि इन दोनों प्रथोंके सकलयिता एक ही आधा हों | जैप सप्ततिकाकी मगल गायामें इस प्रकृरणको दूष्टिवार अग॒की एक चुँदक समान बतलाया है पैसे ही शतऊृदझ्ी १०४ नम्बरवाली याथाएं भी ४से कमप्रदाद श्रुतरूपी सागरकी एक मब देके समान बतलाया गया




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now