अमर सिंह | Amar Singh

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Amar Singh by आचार्य चतुरसेन - Acharya Chatursen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अमरभिई भच् शानी-- हसमें प्राष्यय पया ? में हाड्ायग गये राजपुमारो है महाराज ! अपम्॒रमिइ--परक्छा हादी-महारानी जय इसकर हारा के मृग झाबाद को भी देद में शानी-- . प्राप ही इस भसरपस्त प्रावध्मफ फायप वी पर से में महल में घाऋर महाराज के काम या प्रठाम्प कर । [ एरी बा प्रस्षान 1 सारा- माता को मरी एगिस्गो भातो की मड़ी । बढ़ती हैं सोख दो-वग्पन मुक्त कर दी अमर मिई--दंटी बह राजपूत की बटो है। स्थताश्ता उनके भ्राग्पों में सम ग्ठ्ी है । गे यघम में बद्ध डिसी प्राग्पा थो भी नहीं दइगए सभी | सारा पर पटि मैं उस प्यार करे ठब् भी ए्रपन में शॉप मयभी है या मंदी २ इमरमिश-मर्गी यैटी प्यार गा बघने को स्थयं हो इतना थज यूत है कि किसी घम्य बंधन गो प्रावा्यड्मा हो मरी रखा 1 जाग शाप प्राप भो मेरे हरिए-्यादर को नहीं दगेंगे २ अमारसित--जरूर दपूगा शेरो घददाशुप् रस यरी से स्‍्ाधो। देंगे, हरिग-भादा शंसा है है शारा--. [इशालएण पे) में एमी से छाती है । छाप बा “च्यग]




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