वेदान्त दर्शन | Vaidant Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
837 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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जन्मायस्य यतः ॥ २॥
फ्दार्थ--जन्मादि' उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय ।
“अस्य' इस जगत के। 'यतः” जिस से होते हैं बह
ब्रह्म है ।
अन्वयाथ--जो इस संसार का उत्पत्ति कर्ता, पालन
करने वाला तथा नाश करने वाला परमात्मा है । यह
तटस्थ लक्षण परमात्मा का ह।
प्रश्ष-ब्रह्म जगत का उपादान कारण है शा विमित्त-
कारण अथवा अभिन्न तिभित्तोपादान कारण है?
उत्तर-ब्रह्म जगत का मिमित्त कारण है। क्योंकि
उपादान कारण समझा जावे तो बर परतन्त्र और परिणामी
होगा । क्योंकि रुपान्तर किसो वस्तु का स्वतन्त्रता से मद
होगा। इस में दृश्टान्त का श्रभाव है परन्तु ब्रह्म एक रक और
स्वतन्त्र हैं। इस लिये ब्रह्म को निमित्त कारण ही मानना
ठोक है।
प्रक्ष-यतः संत्र में जो शब्द हैं उनसे ब्रह्म का उण-
दान कारण होना पाय। जाता है और दूसरे शाच्ष!र्थ डसे
अशिक्ष निमित्तोपाद।न कारण ओर तिमित्त कारण दानों
मानते हैं । इस कारण ब्रह्म को अभिन्न निमित्तोपादान कारण
ही माननः टीक है।
उत्तर-- उपादान कारण सदेव परतन्त्र ओर परिणामी
होते हैं । और तिमित्त कारण सरेब् स्व॒तन्त्रओर अपरिणामी
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