सनाथ - अनाथ - निर्णय | Sanath - Anatha - Nirnay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about शंकर प्रसाद दीक्षित - Shankar Prasad Dixit
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)२१ सनाय अनाथ निर्णय
कह दिया, कि मुनि को मूठ तो न बोलना चाहिए ! चौरों के
सिवा और फो$, इस प्रकार सरप्ट बात कहने का साहस नहीं
कर सकता । वीरो के हृदय, स्वच्छ रहते हैं, उनमें साहस होता
है, इसलिए ये किसी भी फासण या भय से अपने #दय के भावों
फो छिपाते नहीं, किन्तु स्पष्ट प्रकट फर देते हैं। इसके सिवा,
जिससे हम अपना भ्रम मिटाना चाहते हैं, उसके सामने मनोगत
भायों फो छिपाना भी अनुचित है। ऐसा फरने से, श्रम फा
मिटाना कठिन हो जाता है ।
राज्य कौ घात मुनफर और विशेषत राजा ने झुनि पर
सपावाद का दोप लगाया इस पर से, उन मुनि को राजा के प्रति
दिंचित् भी कोव, क्षोम या घृणा नहीं हुई । वें मुनि जानते थे,
फि राजा में, मिथ्यात्व ( अज्ञान ) है, इसी से यह् धन सम्पत्ति
आदि न होने में ही अनाथता मान रहा है, और इसी कारण यह
मेरे कयन को, कि तू स्वथ भी अनाथ है. !! मूठ जान रहा है।
जब यह अनाथता फे रूप फो सममत लेगा, तन स्वय ही अपने-
“आप को अनाथ मान लेगा । अमी तो यह अपने पक्ष को लेकर
कह रहा है, और में अपने पक्ष को लेकर कह रहा हूँ। मुझे
सपना पक्ष इसे सममक्ाना चाहिए। इस प्रकार विचार कर,
।.. मी: “जन से कहने लगे--
ञ
दर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...