सन्तान शास्त्र | Santan Shastra

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Santan Shastra by रमेशवारा प्रेमा - Rameshvara Prema

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्शू पहिला प्याय कप ६ जज ग्रह्नचर्पेण तपसा देवा सृत्यु भुपाप्त । इन्द्री ह द्ाचर्येण देवेस्पः स्वर राभरत्‌ ॥ --थ्र्र्थ ञ चर ७. ७. बी र्थातू--सापयर्यनसप सप से देयताद्यों से मृस्यु को दूर किया ह । इन्द्र भी प्रपर्प के डारा हो देपताधों को नेज प्रदान फरता है । कुछ टैवचादी भाग्य के भरोसे पर रस वालो ालसी तथा यज्ञानी पुरुषों ने संसार में ऐसा श्रम फैला दिया हैं कि सृत्यु ्निवार्य है। शो कुछभी चिधाता ने भाग्य में लिग्य दिया हैं चद्द ्रसिट हैं फिर श्रापरचर्य पालने से कया लाभ ? इत्यादि । ऐसे लोगों की चातों में नहीं श्याना चाहिए। बेदों में ऐसे नेक मन्य आए हैं जिनमें सत्यु को दूर हटाने नया उसे पर्वत के नीचे दवा देने का उपदेश है। तात्पर्य यह है कि पुरुपार्थ द्वारा मनुष्य मृत्यु को दटाकर अपसृत्यु के भय से मुक्त हो सकता दि । यह पुरुपार्थ उसी में हो सफता है जिसने आाजन्म यीये-रक्षा न श्ट बी नियमपूर्य ५ अआयुर्चे कक ऑरजपचर्य-श्रत को चेक पाला हो । ायुर्वेद में लिखा है -- गरीरे सर्यधातूनां सार बी प्रकौत्तिंतम्‌ । तदेव चीजस्तेजश्न थलं कान्ति पराक्रम ॥ यस्मि्छुट्दे शरीरशप गतिः शुद्ाभवेत्सदा । ज्ञह्मचय द्शायां हि घोगो झीगा पराक्रम ॥ थियें लेजोविरदितः . रोगय्रस्तकलेवरः सारहीनं यथावस्तु तथेव स॑ नरः स्मृतः ॥




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