समाधि की खोज | Samadhi Ki Khoj

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Samadhi Ki Khoj by युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्या ज्ञान और आचरण की दूरी मिट सकती हैं? १६ सिद्धांत को हम हस्तगत नहीं कर लेते तव तक आनन्द की उपलब्धि का मार्ग भी नहीं मिल सकता । आदमी जब अधिक - व्यस्त होता है तव मानसिक विक्ृतियां बढ़ती हैं । व्यस्तता से रक्‍त में लेक्टर एसिड की मात्रा अधिक बढ़ जाती है। वह मानसिक अवरोध पैदा करती है। वेटा' तरंगें अधिक उत्पन्न होती हैं और वे मानसिक संतुलन को अस्त-व्यस्त कर देती हैं। विश्वाम की स्थिति में अल्फा तरंगें पैदा होती हैं । वे ही आनन्द की उत्पत्ति में कारण भूत हैं । अल्फा तरंगों से मानसिक उपचार साधक कहता है--ध्यान में आनन्द आता है। इसका त़ात्पय॑ यही तो है कि जब साधक काया का उत्समं कर देता है,शरीर की एक-एक कोशिका को निष्क्रिय: सा बना देता है, वाणी शांत, श्वास शांत, मन शांत, समूचा कर्मे-तंत्र शांत, तो उस विश्वाम की सघन स्थिति में मस्तिष्क में अल्फा तरंगों का संवर्धन होता है। बे तरंगें साधक को आनन्द विभोर कर देती हैं। आज के मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि वीस प्रतिशत मानसिक रोग ऐसे हैं जिनकी चिकित्सा अल्फा तरंगों के आधार पर ही की जा सकती है। वे मानते हैं कि एक व्यक्ति के मस्तिष्क की अल्फा परंगों को यदि दूसरे व्यक्ति के मस्तिष्क में संप्रेपित किया जा सके तो रोग का उपचार हो सकता है| यह संभव है । आदमी गुरु, योगी, संत व्यक्तियों के उपपात में बैठता है । उसे अपूर्व भानन्द का अनुभव होता है। ग्रुरुया योगी ने क्या दिया ? कुछ. भी नहीं । फिर आनन्द की मनुभूति कैसे ? उपपात में बैठने वालों को क्या मिला ? कैसे मिला ? यह प्रश्न है। इसका सहज और वैज्ञानिक समाधान यह है कि जिस महापुरुष के मस्तिष्क में अल्फा तरंगों की मात्रा अधिक होती है, उसके आसपास बैठने वालों में वे तरंगें .संप्रेषित होती हैं ओर वे आनन्द की अनुभूति कराती हैं। आज के वैज्ञानिक आध्यात्मिक तथ्यों की व्याख्या जिस प्रकार कर रहे हैं, लगता है कि वैज्ञानिक- जगत्‌ सचमुच ही अध्यात्म-जगत्‌ को उपकृत कर रहा है। आचार्य तुलसी ने कहा था--/विज्ञान को छोड़कर यदि अध्यात्म को प्रस्तुत किया जाए तो वह ग्राह्म नहीं होता। अध्यात्म की व्याख्या केवल शास्त्रों या उपदेश के आधार पर न करें, उसे चैज्ञानिक घरातल देकर प्रस्तुत करें। कोई भी व्यक्ति तब अध्यात्म का विरोधी नहीं होगा। शरीर, वाणी औौर मन का विश्राम हमारी व्यस्तता कम हो। हम विश्राम करना सीखें, जानें। कायोत्सर्ग के धारा हम शरीर फो विश्राम दें, अन्तर्जेल्प, मौन और निविचारता के द्वारा हम वाणी को विश्राम दें तथा प्रेक्षा और दर्शन के द्वारा हम मन को विशाम दें। यदि




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