छान्दोग्योपनिषद् | Chhandogyopnishad
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
24 MB
कुल पष्ठ :
802
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूर्वाध । १७.
पाप करके अशुद्ध करती भई । जब सतोगुणी दृत्तियोँ वाणी विषे
स्थित चेतन प्राण की उपासना करती भई, तब्र उस वाणी बिपे
स्थित चेतन प्राण को तमोगुण-बत्तियां फप से भ्रष्ट करती भई और
इस अ्रक्रार पाप से संयुक्त हुए बाणी द्वारा पुरुष सत्य वे श्रप्तत्य दोनों
बोलता है ॥ ३ ॥
सूलम् |
अथ ह चक्तुरुद्नीधमुपासाश्वक्विरे तद्धासुराः पाप्मना
विविधुस्तस्मात्तेनों मर्म पश्यति दशनायं चादशनीय॑ च
पाप्मना झेतद्िद्धमू॥ ४॥
पदच्डेद! ।
अथ, है, चच्चुः, उद्वीण्म्, उप!प्ताश्वक्रेरे, तत् , ६, असुराः, पाप्मना,
विविधु:, तस्मात् , तेन, उभयम् , पश्यति, दर्शनीयम् , च, आदशनीयम् ,
च, पाणना, हि, एतत् , विद्धन् ॥
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च-भार अखुरा।-इृन्दरियों की तासस
धू-फिर वृत्तियां
* देवता अ्र्यात् हृ- हभी
कद्या न्द्र्या को साजछखक [+% पाप्मनानपाप करके
की विविधुः-संसर्ग करती भई
घहद्दा मे स्थित चेतन तहमःततू-इसी कारण
छाः८< को श्र्थात् चच्त ग्र- लेकर
भिमानी देवता को +चन्ननेश्चय करके
उद्धी धम्-४“काररूप से गजब
हूभलीप्रकार तैनन्डस चत्त हारा
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उसी उस्ु के विपे पक +१
_] स्थित चैतन्य को |. अदशेनीयम्*ून देखने के योग्य
तत्तू-( था चततुभ्राभि- वस्तु का
सानाी दुवता को पश्याते-रेखता है
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