निर्ग्रन्थ - प्रवचन | Nirgranth - Pravachan

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Nirgranth - Pravachan by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ जे पृष्टाह उद्वमखान तो समो सब्वभूएस २६७ [ अ्रन॒ुयागद्वार सूत्र] त्री सहस्स सदस्साएं ७ [उ, ञअ. ६ गा. ३४ ] हुं. 9. .-& डडरा घुड्ढाय पासद्द २४० [सू प्रथ,अ.२उद्दे १ गा.२) डहरे य पणे बुहृढ य २४५८ [स्‌,प्रथ, अ. १३ गा. १८] ण «४ ५.६ ण्घ्या गम भेहाची ३४४५ | उ.अ, १ गा. ४५] ण॒चित्तातायंप भासा ८७ [ उ, अ, ६ गा, ३० | णरगेतिरिफ्खजोशि ४८ | ओपफतिक सूत्र ] णा रफ्खर्सासु गिज्कि. १३० [ उ, झ, ८ गा, शैरू | त े तंचेव तव्विमुक्क ७२५ [ ज्ञा, अ,. ६ | तश्रो पुद्दे आरयेकण रदे३ [उ, ञअ. ५ गा. १९ | तथ्रा से दंड समार्भइ २३१ [ उ. अ, भू गा, ८ तत्थ ठिच्चां जहाठाएुं २२७ [ उ. अ. ३ गा, १६ ै तत्थ पंचचिदं नाणं ७६ [उ, अ, शू८ गा, ४ | तम्दा एयासि लेसाणं २१४ | उ, श्र. धेढ गा, ६१) तवस्सिये किसे दंत, १६० [ उ, अ, २४ गा, १० ] तवो जाई जीचो जोइटाणं ७५ [ उ. अ- १५ गा, ४७ | तद्दा पयणुतराईय. २०८ [उ. अ, ३४ गा, ३० ) तद्दिक्ाएं तु भावाणूं ६३ [उन अ. श८ गा. १५ | संहेव कारण कार ।ति १८४ [द, अर, ७ गा. १९' |




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