जम्बू कुमार | Jambu Kumar

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Jambu Kumar by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही ५ जम्बू स्वासी ॥] [ २१ नहा . जाते हैं वह मनाये गये । बड़े ठाट से राज्य की प्रजा ने राजकुमार ; का नाम 'शिवकुमार' रखा । राजकुमार का पालन-पोपण अत्यन्त सावधानी के साथ, अत्यन्त उल्लास और अनुराग से . किया गया । उसके छाछन पाछन के लिए अनेक घांये नियुक्त , की गई'। कुमार जब सात बप के हुए तो उन्हें विद्या और कछा की , शिक्षा देने के लिये आचाये के पास भेज दिया गया। वहां एक साधारण विद्यार्थी की भांति रहकर उन्होंने कछाओं में कोशल ओर विविध शास्त्रों में दक्षता प्राप्त की । अपने जीवन की नींव सुद्ढद करते हुए सामान्य जनता के जीवन का भी अनुसव किया | प्राचीन काल में शिक्षा की यही प्रणाढी थी। राजा और रक, सम्पन्न और विपनज्न, सभी के वाढक एक साथ रहते थे, गुरु की सेवा करते थे ओर विद्याभ्यास करते थे। इस प्रणाढी से बड़े-बड़े राजकुमारों को भी सामान्य जनता के जीवन का अनुभव प्राप्त हो जाता था। वे उसके सुख दुःख को, उसके अभाव को भछी-भांति समभने में समर्थ होते थे। इसी कारण उस समय सधन निर्धम की विपसता का बिष इतना उम्र नहींथा। राजकुमार जब बिद्याष्ययत समाप्त कर चुके और वाल्या- वस्था को ससाप्त कर यौवन में आये तब राजसी ठाट-बाट से उनका विवाह सस्कार हुआ | वह अपना गृहस्थ जीवन शांन्ति और सुख के साथ व्यतीत करने लूंगे। राजकुमार शिवक्ुुमार एक दिन अपने गगन-चुम्बी महल के मरोखे में बेठे थे । वैभव की कमी न थी । सुख की समस्थ साम- ग्रियां विद्यमान थी। दास-दासी हाथ जोड़े खड़े थे। ऐसा जान




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