पार्श्वनाथ | Parshvanath

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Parshvanath by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पदला जन्म १३ सामग्री अन्त में एक प्रकार की वेदना देकर, स्थायी वियाग से व्याथत करके पिलीम हो जाती दे | अत जो जीव शुद्ध और स्थायी मगल चाहते है उन्हें अहिंसा, सयम और तप की आरा- घना करनी चाहिए | इस सगलमय धर्म की शाक्षै असीम है । जो अपने हृदय मे इस घारण फरता है, उसऊे चरणों में सामान्य जनता की तो बात दही क्‍या, देववा भी नतमस्तऊ द्वोते है । धर्म ही ससार सागर से सऊुशल पार उतरने के लिए जलयान है । अनादि काल से आत्मा में जो अशुद्धि मत्त चिमटा हुआ है उसे घमे द्वारा द्वा दूर किया जा सकता हैँ । जीवन में धर्स ही सार तत्व है, और इसकी आरवना करने से ही मनुष्य सच्चे मनुष्यत्य का अधिफारी होता दहू। धम दो प्रकार का है-- सब विरति ओर देश पिरति | दिंसा, अतत्य, चौये, मैथुन और परिप्रदद रूप पापों का पूरे रूप से परित्याग करना सवे विरति है। सर्च विरति महात्मा मयोदित श्वेत वस्च, पात्र आदि घर्मोपक्णों के आतिरिक्त, जो सयम में सहायक होते है, अपने पास और कुछ भी नहीं रखते । थे मुद्र पर मुसयउक्लिफ्रा वायते है बचा- ख़ुचा, रूफा-सूता भोजन ऊरके सयम-पालन के निमित्त शरीर की रक्षा करते हूं, आर साधार क बांता स जरा भा सराकार नहा रखते। इस प्रफार कं धम का पघारण करन चाल महात्मा मुत्ति कहलाते हैं । शावक धसे बारह ब्रत रूप दें । जो मुन्रि घ्म को स्वीकार करने का साम <ये रखते हैं, उन्हें उसे धारण फर आत्म- कल्याण के पथ पर अग्रसर होना चाहिए । किन्तु जिनमें इतनी क्षमता नहीं है,उन्हें गृदस्था धर्म को तो धारण करना दी चाहिए । तमी आत्मा का उद्धार दोगा। यददी घमे मोक्ष रूपी नगर में जाने का राजमाग है । यद्यपि दोनों धर्मो में विक्तता और सकत्नता




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