निर्ग्रन्थ - प्रवचन | Nirgranth - Pravachan

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Nirgranth - Pravachan by चौथमल जी महाराज - Chauthamal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माहात््य । (६) (रं ~+ ৯ अजुभवों का ज्ञाम उठाकर अपना पथ प्रशस्त बना सकते हैं। क्या ही दीक कहा ६-- ४ हशुमेव निर्गंथे पवयणे सच्चे, अशुत्तरे, ইনু सैसुद्धे, पढिपुरुणे, शआउठए, सह्चकत्तणे, ,सिद्धिममो सुत्ति' मग्ग, निष्चवाणमरगे, िजाणममो, श्चवितदहमसदिद्ध, सव्व- दुक्ष्पहीगममो, दहधियाजीवा सिऽतिः बुऽमति, युति प्रिशेष्वायति, सम्वडुक्खाणमंतं करति । * यह उदुगार उन सहर्षियों ले प्रकट किये हैं जिन्होंने कल्याणमय की खोज करने मे झपना, सारा जावन अर्पण करदिया था ओर निमनैथप्रवचन के आश्रय में घराकर जिनकी खोज समाप हदे थी । यह उद्गार निर्भथअवचनविषयक यह स्वरुपोज्लेस, हमें दीपक का काम देता है । यो तो छ्नादि काल से ही समय-समय पर पथप्रदर्शक तिथ तीथेकर द्ोते आए हैं परन्तु आज से गसग ভাতা इज़ार बे पहले चरम निभ्थ ५० महावीर हुए थे। उन्होंने जो प्रवचन पीयूष की वषो की थी, उसी में का शश य संग्रहीत किया गया है। _ , अह निर्भथ-परवचन परम मांगज्ञिक है, आधि व्याधिः ¦ उपाधि को शमन करने वाल्ञा, षाह्माभ्यन्तर्‌ হিুগা হ্বী दमन करने वात्षा और समस्त इह परल्ञोक संबंधी भयों को लिवारण करने वात्ञा ऐ। यह एक प्रकार का माद्‌ कवचच ' है। जहाँ इसका प्रचार है वहों भूत पिशाच, डाकिनी शाकिनी चादि का भय फट सी नहीं सकता। जो इस अ्रवचनपोत पर धाद होता है वह सौषण विपत्तियों के सागर को सहज , ही पार्‌ कर केता है । यह मुसुछु जनों के लिए परम सचा, परम पिता, परम सहायक और परम भागीनरेशक है।




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