संस्कृतप्रवेशिनी भाग - 1 | Sanskrit Praveshini Bhag - 1

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Book Image : संस्कृतप्रवेशिनी भाग - 1  - Sanskrit Praveshini  Bhag - 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ब्रक्तव्य । मदहाशय 1! इस पुखकके लिये लागेमें दो प्रधान कारण है एफ्सो भ्राचकत्त अप्रेजी स्म॒र्मोर्मेझो मस्तुत म्रिपानेवाली पुस्ाक्के पटाई जातोएँ उनसे धवपिया परियम परोपर भी फल दाम शोता है विध्यार्थो राब्ि दिव रुप रटते २ थक लगी है. पर दापांजा जान नहीं घ्ीता यदि किम्रो अपरिचित गय्दके झुप चनाने डाले ऐ सो पह्चिने कठ फिये इसे भप्टके रुप घलाते है ओर फिर उम्र शब्दके। इस तरह एकता अनुवाद करनेमें भ्रधिका समय लगता है भोर दूसरे कट किये इये शप्टके झूपमें खस होनेसे छसके समान अब शस्दके झपमें मो भ्यांति को जाते है इत्यादि झठिनाइयीकि वशोसूत्र हो हमारे तप युवक्त सम्कतक्ों अतिक्षिट्ट चौर भगस्य सस्फफर पढ़ना छोड बैठते है चिससे कि इस्त पवित्र विद्याका प्रतिदित हास होता चला लाता है। छूपसरा कारण यह ऐ कि हमारे पुराधन पद्वतिसे पढ़ने वाले महाशय प्याजरणादि विषयोंमें तो भति निश्यात हो णाते ९ परतु उनको भगुवाद करना बिलकुल नहीं चाता यदि कभो संस्कृत वार्ताव्यपादि फरनेका काम पड जाता है तो दो धार शब्द भो नहीं बोल सहो । जिससे कि परोक्ताभ्ोते भतुत्तोण हो उक्ताह होन हो जाते है पोर पढना छोड बेटते ३) बस इन्हीं दो कारणोंत्रे वशीभ्रत हो क्षम इस पुस्तकके निर्माण और प्रकाशन वाध्य इये ऐं। इस पुस्तकके दो भाग है लिममेसे प्रथम भागमें शब्दीके प्रयसा, इितोया तथा सवोधन विभशोके, धातुत्रोमे भ्वादि चर तुदादि गयोय॒धातुच्रोंके पर्तमान, भूत॑ भ्रविष्वत और आज्ञा अथके रूप बतलाये गये है अन्य पुस्तकॉर्मे दुट, शनिट,




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