सन्मति - वाणी | Sanmati Vani

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Sanmati Vani by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्मति-वांणी 6 २७... बन णन--क- >--रिनीयनाा- न कि फिननीयाक-ल- १९७-७-७०-कनी लकी कल +-न+००२५० ५०३ पिनना-न-4त ननानत-++नननककण न स+त+. (६) जब संक बुटापा नहों सठादा, जब तह स्याजियों नहीं बत्हों, छलब हक ईद प्रयाँ भशक्तः नहीं ट्वोदों, तब ठड धर्म रा आचरण कर लेना धा दिए, बाद में कुछ नहीं होने का | (४) साशधान शरीर का परित्यांग कर के भा शपवत्र इन दा पाक्नन करमा 'ाहिए ! (८) मूंद मनुष्य धमे के मम को नहीं पम्मर एत्त | (४) भोगामिलाषी मनुए्य घ्॒मे पथ प्ले ग्र्ट ('कऋषनद इस पश्चात्ताप करता है|




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