तुलसी - शब्दसागर | Tulsi Shabda Sagar

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Tulsi Shabda Sagar by डॉ भोलानाथ तिवारी - Dr. Bholanath Tiwariपं. हरगोविंद तिवारी - Pt. Hargovind Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रजेंगंव-्रटक | अजगव-एसं०)-शिव का घननुप पिनाक | अ्जय-(स०) जिसे कोई न जीत सके। उ० खल अति अजय देव दुखदाई । (सा ० 919७०1३) अजयमख-(सं०)-ऐसा यन्न जिसे कर देने से करनेवाला अजय हो जाय । उ करों अजय मख अस मन घरा । (मा० द। ७३1१) अजर-(सं०) १. जो जीर्ण या बूढ़ा न हो २. जो. न पचचे अजीणं ३. ईश्वर का एक विशेषण ४. अह्मा . देवता । उ० १. काल काले कलातीतमजर हर । दर (चि० १२) अजस-ग(सं० झयश )-अपयभ बदनामी निदा। उ० अजस पेटारी ताहि करि गई गिरा सति फेरि । (सा० २) ही जै अ्रजसी-(सं० अयशिनू)-अपयभ्ी यशरहित निदित । उ० अति दरिद्व अजसी अति बूढ़ा । (सा ० 51३११) अ्रजसु-दे० झजस हा । उ० मोर मरन राउर अजसु चूप समुस्िय मन माहि । (सा० २1३३) अजहु-(सं० अध)-अब भी आज भी अब तक | उ० अजहूँ आपने राम के करतब समुभकत हित होह । (वि० १४३) ी अजहूँ-आज भी अब भी । उ० सुक सनकादि मुक्त बिचरत तेउ भजन करत अजहूँ । (वि० ८६) श्रजाँची-(सं० अयाचिनू)-याचनार हित ग संपन्न । उ० कपि सबरी सुप्रीव बिसीषन को नहि कियो झजाँची । (वि० १६३) ग्रजा-(सं०)-१. झजन्मा जिसका कभी जन्म न हो २. बकरी । उ० १. अजा अनादि सक्ति अविनासिनि । (मा ०१३८९) २ जो सुमिरे गिरि-मेर सिला-कन होत अजा- खुर बारिघि बाढ़े। (क० २। ) अजाखुर-(सं ० )-बकरी के खुर का चिह्न । ग्रजाचक-एस० अयाचक)-झया वक जिसे कुछ साँगने की आवश्यकता न हो । उ० जाववक सकने अजाचक कीन्हे । (मा ७१२४). ग्रजाची-(सं० अपाचिन्‌)-जो न माँगे जिसके यहाँ सब ग्रजाति-(सं० अ न जाति)-बिना जाति का जातिरहित । उ० अगुन अमान अजाति सातु-पितु-हीनहि। (पा ० ११) ग्रजान-(सं०झ न-ज्ञान)-अनजान अबोध अनसिज्ञ ना- समक । उ० पूँछुत जानि अजान जिसि व्यापेउ कोपु सरीर । (म० 91२६४) प्र जानी-झज्ञानी सूखे । उ० रानी में जानी अजानी महा पवि पाहन है ते कठोर हियो है । (क० २1२०३ श्रजान्यो-मूखें । उ० देखत बिपति बिषय न तजत हों तातें अधिक अजान्यो । (विं० 8२) ्रजामिल-एसं ०)-एक पापी ब्राह्मण । अजासिल कान्यकुब्ज बाझण थे । इन्होंने समस्त वेद-वेदांगों का अध्ययन किया था एक दिन समिधघा लेने जंगल में गये और चढीं एक वेश्या से प्रभावित होकर उससे फैँस गये । घीरे-घीरे सारा झाचार-विचार जाता रहा और उसे रखनी बनाकर घर लाये । उनकी पतितावस्था यहाँ. तक पहुँची कि शराब खुवा चोरी और . हिसा से भी प्रेस हो गया । एक दिन ऊँ सा उनकी . अनुपस्थिति में आये । उनकी गर्भवती पत्नी ने साधुशों का स्वागत किपा । साधु जाते समग्र भावी कपिनकटक अमरवा है (क० ६1७) [ १० पुत्र का नाम नारायण रख गए । लड़का पैदा हुआ और घीरे-घीरे बड़ा हुआ । मरते समय अजामिल के चारों ओर यम के दूत आकर खड़े हो गए । डरकर उसने अपने पुत्र नारायण को पुकारा । कितु नारायण नास सेने का इतना प्रभाव हुआ कि स्वर्ग के दूत आकर उसे स्वर्ग में ले गए। इतना पापी होने पर भी नाम लेने के कारण वह मुक्ति का भागी हुआ । उ० जौ सुतहित लिए नाम अजासिल के अघ असित न दहते । (वि० ६७) अजित-(सं०) १. जो जीता न गया हो २.विष्णु ३. शिव ४. बुद्ध । उ० १. दीन हित अजित सर्ब्ञ समरथ प्रनत- पाल । (वि० २११) श्रजितं-दे० अजित । अजित को । उ० योगीन्द्ूं ज्ञानगस्यं गुणखनिधिमजितं निगुंण निविकारमू । (मा० ६। श्लो० 3) तजिन-(सं०.)-१. चल्कल छाल २. सखगछाला ३ चमं खाल । उ० १. अजिन बसन फल असन महि सथन डासि कुस पात । (मा० २1२११) ३. गज अजिन दिल्‍्य छुकूल जोरत सखी हँसि सुख मोरि के। (पा० ६३) जिर-(सं०)-१. आँगन सहन २. वायु ३. शरीर ४. मेंढक श. इंद्रियों का विंपय। उ० १. कवि उर अजिर नचावहि बानी । (सा ० ११०३३) श्रजीता-(सं० अजित)-जो जीता न जा सके । उ० सब- दुरसी झनवद्य अजीता । (मा ० ७1७२३) अजीरन-(सं० अजीणें)-१. अजीणे अपच बदहज़मी २. अधिकता ३. नया । उ० १. असन अजीरन को समुस्ि तिलक तज्यो । (गी० २३३) तजे-(सं० अजय)-झजेय जो जीता न जा सके। उ ० रघुबीर महा रनघीर अजे । (सा ० ७19४8) जै-(सं० अजय)-१. अजय न. जीतने योग्य २. हार उ० १. हों हारथो करि जतन बिबिध बिधि अतिसय प्रबल अजे । (वि० ८४) जोध्या-(सं० अयोध्या) -झयोध्या नगरी । उ० दिन प्रति सकल अजोध्या आवहिं । (सा ० ७1२७१) अजीं-(सं० अध्य) अजहूँ अब भी अब तक । श्रज्-(सं०)-१. अज्ञानी सूखे २. अनजान अपरिचित । उ० २ जेहिं अपराध असाघु जानि मोि तजेहु अज्ञ की नाइं । (वि० ११२) क अज्ञता-(सं )-मूद़ता मूखता अज्ञान । श्रश्ञ-(सर आज्ञा)-आदेश हुक्म । आअज्ञाता-झनजान में । व ) ) ज्ञान-(सं ०) १. अविद्या मोह ज्ञान का अभाय र. मूखं नासमक। उ० भक्त-हृदि-भवन अज्ञान-तम-हारिनी ।(वि० ४८) अज्ञाना-दे० ज्ञान । अज्ञानी-(सं०)-जिसे ज्ञान न हो । अश्ञानु-दे० अज्ञान |. श्रज्ञानू-दे० ज्ञान ।._ ग्रट-(सं० अदू)-१. नाना योनियों में अमण २. घूमना टन | उ० १. अर घट लट नट नादि जहूँ तुलसी रहित नजान। (सज १७६) अदक- (0 रोक सका अइवत । उ० को करे अधक




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