अनुभवा नन्द | Aanubhava Nand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। ( १९ )
(और उसके सब सहुण सम्बन्धी भुप्ते अपनी कन््याके प्रदान करनेकी
[च्ञ प्रकाशित करते हैं । मैं परम शातता और परम कोमलता-
[ले इस अपूर्व लामकों ग्रहण करनेकी स्वीकारता देता हू। वे फिर
“कहते हैं तुम मेरी कन्याको स्वधर्मस प्रतिपाहन करना ! में इसके
ईउत्तरम स्वधमैसे पालना स्वीकार करता हू | स्व समागण आनन्द
शप्रफुलित हो. शिव देवीके साथ मेरा लम्म होना योग्य समझकर शी
४ पिद्धात्मस्वरूपकी भाव पूजाका स्मारभ और आरम करते हैं ।
: ऐसी पूमामें ध्यानामे जल्दी है | कर्म ईधनोंकी आहुति देकर होम
होता है। अन्तमे उस निमछ वेडिकाके मध्य विरानित परम
। पिद्भस्वरूपके चहुओर संप्त अंतिम गुणस्््थानरूप भ्रदक्षिणाओकी
#करके वह शिव देवी आज मेरी पद्रानी होती है। मैं उसको पाकर
॥ अत्यन्त मग्न हो गया हू, मेरा स्वभाव उससे तनन््मय हो गया है।
/ मैं अपनी प्रिया शिवसुन्दरीके भोगका अनुपम विलास्त लेता हुआ
( सर्व क्षणिक आनन््दोंसे अतीत अनुभवानन्दके परम विशाकू
| सुछ्लादको ग्रहण करता हू।
[
दशलाक्षणिक धर्म |
(८)
दर्शन विशुद्धिधारी, अविकारी, निर्बैधदशा-विस्तारी, परमपूज्य,
परमेश्वर, आत्माराम विहारी, चैतन्य भूषति आन निन , गण
' शमूहरुप पखिरकों साथ छे शुद्ध भावरूप मिन हे
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