टूटी हुई जमीन | Tooti Hui Jameen
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
232
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भरजणाई जी से कहना कल सवेरे तक मनोज आ जायेगा। दिसी वात की फ़िक्र न
करें। ज्यादा डर लगता हो तो हमारे ववाटर (रेलवे बदाटर) मे चले आओ | रात
यही गुजारकर यही से सवेरे मनोज के साथ शोरकोट चले जाना ।
इन शब्ली को सुनते ही छुदन का दिल डोल-सा गया। क्या सचमुच एसा
खतरा हो गया है । वह यह कहता हुआ-- अच्छा चाचा जी सारी बात भाभी
को बता दूया । आना होगा तो आ जाएँगे '--वहाँ से ठीक उसी रास्ते से घर की
तरफ लौट पडा। बाग, गलियाँ, दीवारों, मादिर से पूछता हुआ कि फिर अपन
कब मिलेंगे। मिलेंगे भी या नही । अगर नही मिलेंगे तो क्या होगा । तुम मुझे जरूर
भूल जाआंगे। मैं कतई तुम्हें नही भूल पारऊंगा । तब मेरा बया होगा। तभी उसे
गोबुल चाचा जो का प्यार भरा चेहरा, लम्दा कद, जो सफेद दरदी में और,
दमकता था, याद हो आया । कसे तसल्ली दे रहे थे ओर पूछ रहे ये तू अने ला क्यो
आया । तू उदास ब्यो है ?
कुन्दन ने हिसाब क्तिव लगाकर जैसे देखा, उदासी का कारण--डर' तो
कतई नही है ।
कुन्दन ने भाकर सारी बात भाभी से कह दो।
भाभी ने सुनकर क्हा--ठीक है। देखो 1 इत्तिला भो मिन्नती है, था नहीं ।
फिर उसे छूटटी भी लेनी होगी । भा ही जाये त्तो अच्छा । नही तो हम अकेले ही
दो चार रोज में निकल पहुगे।
मगर दूसरे दिन सवेरे-सवेरे मनोज आ पहुँचा । पहुँचा बया, आते ही डेढ घटे
का अल्दीमेटम (समय सीमा) दे डाला । जब जमना ने कहा--पहले तुम्हारे लिए
चाय बनाती हें तो बोला--रहने दो यह सब। डेढ़ घटे में शारकोट के लिए गाडी
चलने वाला है। बस तैयार हो जागो। मैं ब्रिता छट्टी, सिफ ड्यूटी एक्सचेंज
(बदल) करके आया हू । वापस पहुचते ही मुझे फिर डयूटी दनी है। यही डेढ घण्दा
है, जो मर्जी हो कर लो ।
किसी ने सोचा भी न था कि ऐसा द्वोने वाला है! जसे तसे जो कपडा, रास्ते
का सामान, हाथ आया, उठा लिया । बाकी बड़े बड़े बवसो मे ठूस, उ'हे डबल वाले
ताले लगाकर घर से निकल पडे । मालिक मकान राम खखा शाह जी उतके छोटे
भाई शम्भू (सरदार जी) उनकी बहन बेचे आदि परिवारजन तथा मृहल्ले के बहुत
से लोगो ने उद्दे विदाई दो । एक ने कहा--ऐस ही घबराकर क्यो भाग *हे ही ।
हम भी तो बढे हैं यहाँ ॥ और यह इस शहर मे द्विद्ुआं की आबादी मुसलमान से
कितनी ज्यादा है।
इसका उत्तर शाह णी ने ही दिया--वकक्त का कोई भरोसा नही इस वक्त तो
सब ठीक ठीक सा लगता है । मगर वक्त अदर-ही-अन्दर कसी क्ट्वर्टे ले रहः है ।
ऊपर से दिखायी नही देता । मैं बुजुग आदमी, मुझे तो लगता है हमारी जमीन के
टूटी हुई जमीन / 25
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