टूटी हुई जमीन | Tooti Hui Jameen

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Tooti Hui Jameen by हरदर्शन सहगल- Hardarshan Sahagal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about हरदर्शन सहगल- Hardarshan Sahagal

Add Infomation AboutHardarshan Sahagal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
भरजणाई जी से कहना कल सवेरे तक मनोज आ जायेगा। दिसी वात की फ़िक्र न करें। ज्यादा डर लगता हो तो हमारे ववाटर (रेलवे बदाटर) मे चले आओ | रात यही गुजारकर यही से सवेरे मनोज के साथ शोरकोट चले जाना । इन शब्ली को सुनते ही छुदन का दिल डोल-सा गया। क्या सचमुच एसा खतरा हो गया है । वह यह कहता हुआ-- अच्छा चाचा जी सारी बात भाभी को बता दूया । आना होगा तो आ जाएँगे '--वहाँ से ठीक उसी रास्ते से घर की तरफ लौट पडा। बाग, गलियाँ, दीवारों, मादिर से पूछता हुआ कि फिर अपन कब मिलेंगे। मिलेंगे भी या नही । अगर नही मिलेंगे तो क्या होगा । तुम मुझे जरूर भूल जाआंगे। मैं कतई तुम्हें नही भूल पारऊंगा । तब मेरा बया होगा। तभी उसे गोबुल चाचा जो का प्यार भरा चेहरा, लम्दा कद, जो सफेद दरदी में और, दमकता था, याद हो आया । कसे तसल्ली दे रहे थे ओर पूछ रहे ये तू अने ला क्यो आया । तू उदास ब्यो है ? कुन्दन ने हिसाब क्तिव लगाकर जैसे देखा, उदासी का कारण--डर' तो कतई नही है । कुन्दन ने भाकर सारी बात भाभी से कह दो। भाभी ने सुनकर क्हा--ठीक है। देखो 1 इत्तिला भो मिन्नती है, था नहीं । फिर उसे छूटटी भी लेनी होगी । भा ही जाये त्तो अच्छा । नही तो हम अकेले ही दो चार रोज में निकल पहुगे। मगर दूसरे दिन सवेरे-सवेरे मनोज आ पहुँचा । पहुँचा बया, आते ही डेढ घटे का अल्दीमेटम (समय सीमा) दे डाला । जब जमना ने कहा--पहले तुम्हारे लिए चाय बनाती हें तो बोला--रहने दो यह सब। डेढ़ घटे में शारकोट के लिए गाडी चलने वाला है। बस तैयार हो जागो। मैं ब्रिता छट्टी, सिफ ड्यूटी एक्सचेंज (बदल) करके आया हू । वापस पहुचते ही मुझे फिर डयूटी दनी है। यही डेढ घण्दा है, जो मर्जी हो कर लो । किसी ने सोचा भी न था कि ऐसा द्वोने वाला है! जसे तसे जो कपडा, रास्ते का सामान, हाथ आया, उठा लिया । बाकी बड़े बड़े बवसो मे ठूस, उ'हे डबल वाले ताले लगाकर घर से निकल पडे । मालिक मकान राम खखा शाह जी उतके छोटे भाई शम्भू (सरदार जी) उनकी बहन बेचे आदि परिवारजन तथा मृहल्ले के बहुत से लोगो ने उद्दे विदाई दो । एक ने कहा--ऐस ही घबराकर क्यो भाग *हे ही । हम भी तो बढे हैं यहाँ ॥ और यह इस शहर मे द्विद्ुआं की आबादी मुसलमान से कितनी ज्यादा है। इसका उत्तर शाह णी ने ही दिया--वकक्‍त का कोई भरोसा नही इस वक्‍त तो सब ठीक ठीक सा लगता है । मगर वक्‍त अदर-ही-अन्दर कसी क्ट्वर्टे ले रहः है । ऊपर से दिखायी नही देता । मैं बुजुग आदमी, मुझे तो लगता है हमारी जमीन के टूटी हुई जमीन / 25




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now