मध्यकालीन हिन्दी काव्य की तांत्रिक पृष्ठभूमि | Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prashthabhumi

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Madhyakalin Hindi Kavya Ki Tantrik Prashthabhumi by विश्वम्भरनाथ उपाध्याय - Vishwambharnath Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ २३ ) 'ह्रिों ह्रार हुआ फर्योकि पृष्प डाडेट करता पा तब (छिप एए के आर पास झर के पोये उपर सेडी थीं अपवा स्‍्गढे उगे हुए दौयों कौ रहा करती फसल प्ले पर उतकी बालें छोइ्दों शोर शासे लिडासदी थों। दाहिक अमे में पियों भी प्रषामवा है, री धक्ति को है प्रथा होती है मौर 'थक्ति ही बहाँ उयसस्‍्व है मता भ अट्टोपाध्याय का अनुमान है कि तांजिक धर्म प्रारम्भिक हुपि के समय से घ॒मा झा रहा है। हिस्तु इस एम्शंष में मे निबेदन वह है हि दंजों में केबल इृपि-सर्म्भंणी जापार ही नह हैं। ब्तुठः ठंजों भे 'मुफ़त्मौत एम्दंघ/ भोर निप्मों के विएश जाने डी प्यृति अमिक है। इससे गह स्पष्ट है कि आारिमसाम्णमादी स्ाजस्था की यादगाए तैँंशों में सुए्षिक पत्तो माई है मोर बर्यो वर्षों बोर जाटियों में विभाजित समा के गिहद्ध हद क्जीसाई समठा और स्दणएसता दे प्रचारक हैं। गजीसाई ब्यपस्पा में हिस सोपास से हॉजिकषमं सिक्का, यह बहता अटिश है दया एतगे पाचन युग का शनुमाव ही सम्मद है ( थी अट्टोपाध्याप दो मत है कि छामाशिक विकास में माहू-परभ्नप्प दो शोपारों में दिखायी पहुवा है। प्रशम्मिक मारेट-अशस्वा में साहू-रभुएण पा ठब मारी पुरप हे साप मिस कर शिक्वए ढरही थी छोर धापद शारीरिक बल मे भोफमनत पी किस्तु साक्षेटइन्वबस्पा के अर्ठ तक बारोट वा कटिं कार्य पुष्प करने खंगा भौर इश्क गे बाप! के दाएण पए रा गाए शिर4र सिएँ ९:एे गे | घ5 पुर्प प्रशुत्य प्बापित हुझा रिम्तु मायेटक पुरपों गा! साय ते देशर लियों से उससे भी मह्त्वपूर्ष काम पड विया कि बह अनाज के पौ्षई भो धर के आस पराप्त उपामे सर्यी और मप्त का प्रयोध शोदन में टोने रूपा, फततः माहू प्रभाय पुन्ा बढ़ा भौए तं्जों म बुपि सम्दंपी आचार अब्िछ होते से हांजि।पर्म व उत्पत्ति बा! सर्म्बप पार्एम्मिक बृषि के ताप जोड़ा प्रा ससठा है शिखु शरम्सभ भागेटझ जगरता में मुठेयौन सग्मंप एंच्सित था शोर हंत्रों में दोग-्याद॑ष्य वा प्रपाए है ढग यदि बोई बद्टे हि ८र्षों दा एम्द्रेप ऋएदिम इप्पटब-मदस्‍्दा से या, हुश कया उत्तर होगा? भरता मैरा निवेदन यह है कि तॉजिश मं जादिम माधटक अगर्ग से तेफर क्योमादी हम्ताज के पुर तक को रप्पूमे 'कडौलाई प्यवरपा कौयादगार है। और गयेबादो समाज है दी 'पादपार' की प्रेरणा लेहर, ठाजिक शताध्यियों कक सड़ठे रदे है । पह एक छय है ऊ्रि दंचों में गई आाषाए हपि स्स्बंधो प्रदीड़ होते हैं। भी घट्टेसाम्पाम के अनुखए तंजों में 'बासाकार' अर्पाद पापा न आचार ८




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