जागरण | Jagaran
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
724 KB
कुल पष्ठ :
105
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्ञागग्रा ् ्
(१)
सोने वाले मुनि नहीं होत,
मूनि तो सटा जागते रहत हैं।
(7?)
आर धीर पुम्प
भोगों की आशा और लालसा छोड़ दे। तू स्यय इस काटे
को लफ्ग द सी हो रहा है ।
(३)
तुम निनसे सु की आशा रखते हो, वसस््तुत थे सुख के
कारण नहीं हैं । मोह से घिरे हुए लाग इस यात को नहीं समभते ।
ड।
सारा ससार स्त्रियां के प्रति अपनी आसतक्ति के कारण दु सी
है | परिवार के मोह म फंसे हुए लाग कहते हैं कि स्त्री-आदिऊ
परियार मसुस का साधन है परातु घासतय में देखा जाय तो यह
सब टु ख, मोह, मृत्यु, नरक और नीच गति (पशुयोनि ) का
कारण है!
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