जागरण | Jagaran

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ज्ञागग्रा ्‌ ्‌ (१) सोने वाले मुनि नहीं होत, मूनि तो सटा जागते रहत हैं। (7?) आर धीर पुम्प भोगों की आशा और लालसा छोड़ दे। तू स्यय इस काटे को लफ्ग द सी हो रहा है । (३) तुम निनसे सु की आशा रखते हो, वसस्‍्तुत थे सुख के कारण नहीं हैं । मोह से घिरे हुए लाग इस यात को नहीं समभते । ड। सारा ससार स्त्रियां के प्रति अपनी आसतक्ति के कारण दु सी है | परिवार के मोह म फंसे हुए लाग कहते हैं कि स्त्री-आदिऊ परियार मसुस का साधन है परातु घासतय में देखा जाय तो यह सब टु ख, मोह, मृत्यु, नरक और नीच गति (पशुयोनि ) का कारण है!




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