जागरण | Jagaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jagaran by मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मिश्रीमल जी महाराज - Mishrimal Ji Maharaj

Add Infomation AboutMishrimal Ji Maharaj

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
ज्ञागग्रा ्‌ ्‌ (१) सोने वाले मुनि नहीं होत, मूनि तो सटा जागते रहत हैं। (7?) आर धीर पुम्प भोगों की आशा और लालसा छोड़ दे। तू स्यय इस काटे को लफ्ग द सी हो रहा है । (३) तुम निनसे सु की आशा रखते हो, वसस्‍्तुत थे सुख के कारण नहीं हैं । मोह से घिरे हुए लाग इस यात को नहीं समभते । ड। सारा ससार स्त्रियां के प्रति अपनी आसतक्ति के कारण दु सी है | परिवार के मोह म फंसे हुए लाग कहते हैं कि स्त्री-आदिऊ परियार मसुस का साधन है परातु घासतय में देखा जाय तो यह सब टु ख, मोह, मृत्यु, नरक और नीच गति (पशुयोनि ) का कारण है!




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now