दादा | Dada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सन्रद् सेठ व लाला उठाते रहे हैं उनसे डेढ़-दो रुपये का श्रौर प्रबन्ध कर लुँगा | तभी पत्नी ने कहा लेकिन भला देवी साहू क्यों मदद करने लगे यह दुष्ट तो उनके पीछे हाथ धो कर पड़ गया है । झौर तुम देख लेना यह स्कूल में भी ठीक नहीं हो सकता । दरारत उसकी नस-नस में भरी है । लम्बी साँस ले कर यदुवंद ने कहा कुछ भी हो कुछ न कुछ प्रबन्ध हो ही जायगा । श्राखिर घर से निकाल तो दूँगा नहीं । माँ सरते वख्त यही तो कह गई थी... ... ्‌ और श्राज इसी फंसले के फलस्वरूप छोटू स्कूल जा रहा है और उसी को भरती कराने के लिए यदुबंदा भी जा रहे हैं । यदुवं् को छोटू को छोटी-छोटी दारारतों में उसका भविष्य साफ दिखाई पड़ता हैं । उसे रोकना होगा नहीं तो यदि वह क्रांन्ति- कारी हो जायगा तब एक ही घर में पानी भर झ्राग का साथ-साथ रहना सम्भव न हो सकेगा । और इस झ्राग को बढ़ने के पूर्व ही यदुवंश उसे बुका देना चाहता है ।




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