सिद्धान्त संग्रह | Siddhantsaradisangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ इसारे मेक मिप्रोंकी ओर जिड्ञार्मोक्री शिकापत है कि प्रश्यमाफाफ्म सम्पादण लौर संशोधम सल्तोपअब्क गहीं दाता है। लगश्न ही बह शिष्पवत निर्मुख् नहीं है। प्रश्ममाछाके इस शोपको इस स्वीकार करते हैं लोर बह इसारी दृहिसे थाइर सौ गो है; परम्ठु इसके भर करनेगे जो कठिमाइमों हैं मे भी सापारण नहीं हैं। एक तो इसारा समाज इस दिपयमें बहुत डदासौग दे। साथपारण कोर्गोकी बात शो जाने बीजिपू, बढ़े बड़े पण्डितों और विद्वा्ों रकका इस कार्यसे को८ विशेष अलुराग रहीं है और पही कारण है कि बहुत कुछ प्रचश्श करवेपर भी प्रल्भोंकी जितनी चाडिए डतवी दस्तकिक्षित प्रतियीं हमें प्राध्त मी होती हैं जौर इसका कक्ष यद्द ड्वोठा है कि हमें सभेऊ प्रस्थ केजज पक ही एक हुरी सक्की प्रठिके लाधारसे सुत्रित कशना पड़ते हैं कौर इसस छेसा चाहिए बैसा संझोधन पहदं दो सकता है ! प्रष्पर्सशोधम और सम्पाइत करणकी भी पुक कक्ा है कौर इस मर तपा ली छोककर पूरा पूरा परिश्रम करमेषाके ब्युत्प्त विद्धार्णोक्प हमारे समाजर्मे प्राप भाव है । तौछरे प्ल्थमाफ्ताका फम्ड बहुत दी भोड़ा दे और इस छिप इस कर्षी डितता अभि इतबा रच रुईं किया ला सकता ( छब तक इसके किए गो आर बैतबिक भिहाजू स्वर्तश्रूपसे व रक्खे आदे और उन्हें ्नम्पाधक-संश्ो बन- कक्षा अ्भ्थाप्त व बरगांपा क्ाप स्प्रथ शी इस्तकिकित प्रश्योंकी प्रतिन्रों मास करेगें स्चसाधारण सजतों तबा विद्ञानोंसे स्द्टाषता प्रस्सतत दो ठब तक इस बोपका सर्दणए तूर हो लागः कप्रिण है। फिर मी ज्दा तक दब सकता है इस विपषर्मे प्रदत्म लभश्प किया लाता है। चडह इस फहके दी बाधते थे के एस्कुत प्राकृत मत्पोकी विजयी बहुत दी जोदी होती है; फरत्तु हमें ऋाशा बी कि रण कोोंकी रे शाप्तशाण्की बोर झुकेणी ओर दावी धर्माप्मालोंके द्वारा इन पश्योकरी सी सौ दो दो सौ प्रतिों दितरण कामेके किए परीदौ आती रहेंगी । छझू झसमें कुछ सख- औओँमे इसारी इस आशाको पूर्ण भी किया परन्तु रब तो सारा क्षमाज दी इस ओरसे ढदासीब पिचतकाई देता दहे। समझें नहीं लाता कि बेबधर्मकी डच्चाति और पभावता चाज्नमेदत्के इस शाखतासकी भाईसमाको कब समअगे #




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