धीरे बहे दोन रे .. खण्ड - 4 | Dhire Bahe Don Re Khand 4

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Dhire Bahe Don Re Khand 4 by गोपीकृष्ण 'गोपेश'- Gopikrishn 'Gopesh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घोौरे बहे दोन रे २७ झासमात मे दिन का उजाला छिटकना शुरू ही हुआ कि वह घोड़ा दोडाता दोन तक जा पहुचा | इस वीच स्वयंसेवक ने अपनी गलती समभी श्ौर जोर जोर से बातें करत हुए खाइयो की ओर लौठ 1 प्रियोरी उनके एक दल क॑ पास पहुचा और व्यम्य करते हुए बॉला-- “मीज़ तेरकर पार करते म बहुत लोग डूब गये क्या २! सिर से पैर तक पाती से तर बतर एक राइफ्लमन ने चलत चलते झपनी वभीज उतारी और स्वरों के उतार-चढाव के सांध जवाब दिया-- हम सब तो पराइक मछलियों वो तरह तरे। डूउते झाखिण बयो २! “वैसे गलतियाँ हर भादमी करता है ।” सिफ़ पैट पहने एक दूसरा भाटमी सूभो की भाषा में बाला--'प्रव हमार ग्रुपन्कमाडर को ही लो । सचमुच डूबते डूबते बचा । बात यह हुई कि उसने पढ्टियाँ खोलने में ख़च होने वाले ववत को बचाने के खयाल से जूते नहीं उतारे भौर पानी में हिल्त गया। तैरन लगा तो पट्टिया दीच मे ही खुल गईं भौर पैरा म उल भने लगी । फिर तो किस तरह गला फाडकर चिल्लाया बह | काई एक वस्ट दूर होता तो भी उसकी श्रावाज़ सुन लेता ।” ग्रिगोरी ने स्ववस्तेवकों की टुबडी के कमांडर को खोजा स्‍झोर उसे हुक्म देते हुए बाला--“इन लोगो को जगल के सिरे पर ले जामो घोर इंह इस तरह रखो कि जरूरत पढने पर ये बाहर से लाल फौजियो की कतारा व घेर सके 1” इसके बाद उसने अपना घांडा भोडा प्रौर अपन स्ववैड़्न की भोर बडा | सडक पर उस्ते स्टाफ वा एक पभ्दली मिला । प्रादमी न घोढे वी रातें खाची भोौर संतोष को साँस लेते हुए दोला-- “मैं दलाकान हो गया झापको खोजते खोजते ।” झोर घोडे के पुट्ठा ओर बाजुपो से देखन से जगा वि जानवर को तावडतोड दौडाया गया है । “क्यो ? शात क्या है 7?! “पहटाफ ने झापव॑ पाष्टठ सबर भेजी है कि तातारस्की कम्पनी के लोगा न प्रपती प्रपनो खाइयाँ छोड दी हैं झौर वे, घिर जाने के डर से, घलुद मैदान बो तरफपीछ माग रह हैं। खुद कुदिनाव न वहा है कि भाप




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