सूक्ति मंजरी ग्रन्थमाला | Sukti Manjari Granthamala
श्रेणी : काव्य / Poetry, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.66 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द
चिता का क्स्यास भी करना 'चाहिए। इन तोनों का ज्ञान फाम्य के
छिये आवश्यक है । इसीलिये मग्मद ने काम्यएकाश की निसलिसित
कारिका में काम्य के कारणों का उद्टेख करते समय दाक्ति, निपुगता
सथा धम्यास इन तीनों की आवश्यकता दिखाने के लिये ( हेतु ) देतु
चाब्द का एकवचन में प्रयोग किया है :--
दाक्तिर्निपुणता लोकशास्रकाब्यायवेक्षणात् ।
काष्यशशिक्षया5म्यास इति देतुस्तदुद्गमवे ॥
सिधिछा के प्रसिद्ध सादित्यिक, “काम्य-प्रदीप' के रचपिता, गोंधिन्द
ठफ्कुर के विपय में पण्डित समाज में एक रोचक भाएयान प्रर्पात है ।
कहते हैं कि एक थार घड़ी सभा जुरी थी । उसमें पाठ की. साठ
निकाठने घाले, ककश तक के सतक दोकर भ्षध्यपन फरनेवाले तार्डिक-
पुंगव मैथिटों की भीइ मी थी । दुर्शन के पुफ-से-पुझ भरे विद्वान
यों उपस्थित थे । इसी बीच में यादिन्द उककुर भी का पहुंचे। कह
मिधिला भर में सादिस्य के नाते से प्रसिद्ध थे । पोच परिश्तों ने साथा
कि इन्दें नीचा दिखछाने का अच्छा लवसर दे । थे मजे में जञानेने मे
कि इन्द्ोनि शष्ययन तो किया है केवल साहित्य का, इस दार्धनिक
मण्डली में भला दे बया फदं सचते हैं । अतः उन्दं धर दयोपने का
साकू मौका भाया देख थे छूने पक स्वर से पूछने--किमधीत भवता ?
छापने क्या पा है १ धापने किसि शाखर या कषध्ययन किया है ? गोविन्द
डकडूर ने उन रटूदू पण्डितशु्ों पर दान वी तरद सपेटा मारते हुए श्वद
पर झट उत्तर दिया--सादित्यमेयापीतमरमाभिः, तद्ट्रतया हु सर्वाणि
दायाणि अधीतानि । अप्ययन तो किया है मैंने केयठ सादिष्यदशाख
का; परम्तु उसके भट्ट रुप से हमने सब शास्ों बा भाध्ययन किया है ।
यह उत्तर सुनते हो पण्दितें का सुंदर फीशा पढ़ गया । गोविन्द टजडुर
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