सूक्ति मंजरी ग्रन्थमाला | Sukti Manjari Granthamala

Sukti Manjari Granthamala by बलदेव उपाध्याय - Baladev upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द चिता का क्स्यास भी करना 'चाहिए। इन तोनों का ज्ञान फाम्य के छिये आवश्यक है । इसीलिये मग्मद ने काम्यएकाश की निसलिसित कारिका में काम्य के कारणों का उद्टेख करते समय दाक्ति, निपुगता सथा धम्यास इन तीनों की आवश्यकता दिखाने के लिये ( हेतु ) देतु चाब्द का एकवचन में प्रयोग किया है :-- दाक्तिर्निपुणता लोकशास्रकाब्यायवेक्षणात्‌ । काष्यशशिक्षया5म्यास इति देतुस्तदुद्गमवे ॥ सिधिछा के प्रसिद्ध सादित्यिक, “काम्य-प्रदीप' के रचपिता, गोंधिन्द ठफ्कुर के विपय में पण्डित समाज में एक रोचक भाएयान प्रर्पात है । कहते हैं कि एक थार घड़ी सभा जुरी थी । उसमें पाठ की. साठ निकाठने घाले, ककश तक के सतक दोकर भ्षध्यपन फरनेवाले तार्डिक- पुंगव मैथिटों की भीइ मी थी । दुर्शन के पुफ-से-पुझ भरे विद्वान यों उपस्थित थे । इसी बीच में यादिन्द उककुर भी का पहुंचे। कह मिधिला भर में सादिस्य के नाते से प्रसिद्ध थे । पोच परिश्तों ने साथा कि इन्दें नीचा दिखछाने का अच्छा लवसर दे । थे मजे में जञानेने मे कि इन्द्ोनि शष्ययन तो किया है केवल साहित्य का, इस दार्धनिक मण्डली में भला दे बया फदं सचते हैं । अतः उन्दं धर दयोपने का साकू मौका भाया देख थे छूने पक स्वर से पूछने--किमधीत भवता ? छापने क्या पा है १ धापने किसि शाखर या कषध्ययन किया है ? गोविन्द डकडूर ने उन रटूदू पण्डितशु्ों पर दान वी तरद सपेटा मारते हुए श्वद पर झट उत्तर दिया--सादित्यमेयापीतमरमाभिः, तद्ट्रतया हु सर्वाणि दायाणि अधीतानि । अप्ययन तो किया है मैंने केयठ सादिष्यदशाख का; परम्तु उसके भट्ट रुप से हमने सब शास्ों बा भाध्ययन किया है । यह उत्तर सुनते हो पण्दितें का सुंदर फीशा पढ़ गया । गोविन्द टजडुर




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