सोया मन जग जाये | Soya Man Jag Jaye
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
238
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about युवाचार्य महाप्रज्ञ - Yuvacharya Mahapragya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)क्या मूड पर अंकुश लगाया जा सकता है ? 4१९
परिणाम है मृत्यु । संस्यासी बोला--किसे मारोगे ? मैं तो मरा हुआ ही हूं ।
चले जाओ यहां से-। सूरज की जो धूप आ रही है, उसे मत रोको ।
जिन व्यक्तियों ने अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुना है, समझा
है, जिन्होंने मस्तिष्क के दाएं पटल को जागृत कर डाला है, उनके मूड को
कोई विक्ृत नहीं कर सकता ।
आज के युग में बायां पटल अधिक सक्रिय है और दायां सुषुप्त है ।
दोनों में सन्तुलन अपेक्षित है । यह् सन्तुलन समवृत्ति श्वास-प्रेक्षा से साधा
जा सकता है । यह अंकुश-शक्ति है। जैसे हाथी के नियन्त्रण के लिए अंकुश,
घोड़े के लिए लगाम होती है, वैसे ही समवृत्ति श्वास-प्रेज्षा इन दोनों पटलों
के सन्तुलन के लिए नियन्त्रणकारी है। यह नियन्त्रण शक्ति हमारे हाथ में
हाती चाहिए । अन्यथा सूड बार-वार विगड़ेगा ।
आज का समूचा परिवेश मनोदशा को उत्तेजित करने वाला और
विगाड़ने वाला है। आदमी की सहनशक्ति कम हुई है जौर इसका कारण है
सुविधावादी मनोवृत्ति । इस वृत्ति में सहन करने की जा प्राकृतिक क्षमताएं
थीं, उन्हें नष्ट कर डाला । आज भादमी सर्दी-गर्मी सहन नहीं कर सकता ।
सुविधाओं को भोगते-भोगते वह उनके वशवर्ती हो गया है । सहतशक्ति चुक
गई है । केवल शारीरिक सहनशक्ति ही नहीं, आदमी का मत भी कमजोर हो
गया है । उसकी भी सहनशक्ति कम हो गई है। कठोर जीवन और श्रम का
जीवन जीना अच्छा होता है । पर उसे भूला दिया गया । इन सुविधाओं ने
आदमी में स्वार्थ और क्ररता का भाव भी उजागर किया है। आदमी सारी
सुविधायें स्वयं भोगता चाहता है। दूसरों के प्रति उसका वैसा भाव नहीं है।
महात्मा गांधी इलाहाबाद गए । आनन्द भवन में ठहरे। प्रातःकाल
हाथ-मुंह धो रहे थे । पास में जवाहरलाल नेहरू बैठे थे । वातचीत चल रही
थी। गांधीजी के लोटे का पानी समाप्त हो गया । वे बोले--ओह ! वात ही
वात्त मं पानी पूरा हो गया और अभी कुल्ला करना शेष है । नेहरू ने कहा--
वापू ! क्या कह रहे हैं ! पानी पूरा हो गया तो आप जितना चाहेंगे उतना
जौर आ जाएगा। यह गंगा-यमुन्ा का नगर है। यहां पानी की कमी कसी ?
वापू बोले--जवाहर ! तुम ठीक कहते हो कि यह नगर गंगा-यमुना का है ।
किन्तु इन पर अकेले बापू का अधिका र.नहीं है । लाखों-करोड़ों लोगों का इन
पर अधिकार है। मैं फिजूल पानी खचे करूं, यह अनुचित है ।
ऐसी भावना तब्र बनती है जब दृष्टिकोण सुविधावादी नहीं होता ।
कल ही मैं एक कोटेज से गुजर रहा था। मैंने देखा कि टन््की से पानी फिजल
नीचे गिर रहा है। इतना पानी कि दस-बीस व्यक्ति स्वान कर लें । पर उस
ओोर किसी का ध्यान नहीं था, क्योंकि पानी का जमाव नहीं है, प्रचुरता है ।
यह नहों सोचा जाता कि दुनिया में मैं अकेला ही नहीं हूं, लाखों और हैं,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...